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‘काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं’, पत्थर में भी जान फूंकती हैं अटल बिहारी की ये 3 तीन कविताएं

'गीत नया गाता हूं', 'मौत से ठन गई' और 'कदम मिलाकर चलना होगा' अटल बिहारी वाजपेयी की ऐसी कविताएं हैं जो इंसान को जीवन में हार नहीं मानने की सलाह देती हैं।

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Atal Bihari Vajpayee Poems
  • December 25, 2024 11:15 am Asia/KolkataIST, Updated 11 hours ago

नई दिल्लीः भारत के दसवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने न सिर्फ नेता के रूप में लोगों का दिल जीता बल्कि वे एक प्रख्यात कवि भी थे। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। अटल जी की कविताएं इतनी अद्भुत थी कि मानों पत्थर में भी जान फूंक दें। अगर हम अटल जी की कविताओं को अपने जीवन में उतार लें तो हमारा आत्मविश्वास कभी डगमगा नहीं सकता। वाजपेयी जी की जयंती पर आज हम आपको उनकी ऐसी ही तीन कविताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।

गीत नया गाता हूं

कदम मिलाकर चलना होगा

बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा
क़दम मिलाकर चलना होगा

मौत से ठन गई

ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आजमा।

मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

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