नई दिल्ली: भारत में कई मंदिर हैं जिनकी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएँ पुरुषों के जाने की अनुमति नहीं देतीं। ये मंदिर धार्मिक आस्था और पुरानी परंपराओं के प्रतीक हैं। भारत अपनी विविधता और समृद्ध धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर धार्मिक स्थल के पीछे कोई न कोई अद्भुत कथा और मान्यता जुड़ी होती […]
नई दिल्ली: भारत में कई मंदिर हैं जिनकी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएँ पुरुषों के जाने की अनुमति नहीं देतीं। ये मंदिर धार्मिक आस्था और पुरानी परंपराओं के प्रतीक हैं। भारत अपनी विविधता और समृद्ध धार्मिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर धार्मिक स्थल के पीछे कोई न कोई अद्भुत कथा और मान्यता जुड़ी होती है। देश में कई ऐसे मंदिर हैं जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। यह परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं और इनकी अपनी-अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं। आइए जानते हैं ऐसे 5 मंदिरों के बारे में जहां पुरुषों का जाना वर्जित है और इसके पीछे की कथा।
अत्तुकल भगवती मंदिर केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित है। इस मंदिर में सालाना ‘पोंगल’ उत्सव के दौरान पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। इस उत्सव के दौरान लाखों महिलाएं मंदिर परिसर में एकत्र होती हैं और भगवान की आराधना करती हैं। कथा के अनुसार, भगवान पार्वती ने एक बार एक बालिका के रूप में यहां अवतार लिया था और अत्तुकल भगवती के रूप में पूजी गईं। इस वजह से इस मंदिर में महिलाओं का विशेष महत्व है।
यह मंदिर भी केरल में स्थित है और यहां के ‘नार्तूर पोंगल’ उत्सव के दौरान पुरुषों का प्रवेश निषेध है। इस मंदिर में केवल महिलाएं ही पूजा कर सकती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, इस मंदिर की देवी ने अपने भक्तों को आदेश दिया था कि नार्तूर पोंगल के समय केवल महिलाएं ही पूजा करें।
पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर भी विशेष महत्व रखता है। इस मंदिर में पुरुषों का प्रवेश तभी होता है जब वे किसी विशेष पूजा या अनुष्ठान के लिए आते हैं। सामान्य रूप से यहां महिलाओं का प्रवेश ही प्रमुख होता है। यह माना जाता है कि ब्रह्मा जी के शाप के कारण यहां पुरुषों का प्रवेश सीमित है।
इस मंदिर में “अंबुवाची मेला” के दौरान, जो कि देवी कामख्या के मासिक धर्म के समय को दर्शाता है, पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। यह मेला महिलाओं की जैविक शक्ति और प्रजनन क्षमता का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है।
केरल के कोल्लम जिले में स्थित कुझिक्कल भगवती मंदिर में महिलाओं का वर्चस्व है। यहां, ‘त्रिपुत्तारी पूजा’ के दौरान, पुरुषों को मंदिर के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं होती। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि इस पूजा के समय केवल महिलाओं की उपस्थिति ही शुभ होती है।
इन मंदिरों में पुरुषों के प्रवेश पर प्रतिबंध धार्मिक आस्था, परंपराओं और सामाजिक मान्यताओं पर आधारित है। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन मान्यताओं का सम्मान करें, भले ही हमें उनके साथ सहमति न हो। ये परंपराएं हमें विविधता और भिन्नता के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का पाठ पढ़ाती हैं। भारत के ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि महिलाओं की विशेष भूमिका को भी दर्शाते हैं। इन मंदिरों में स्थापित परंपराएं और मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं और इन्हें बहुत ही श्रद्धा और सम्मान के साथ पालन किया जाता है। पुरुषों के प्रवेश निषेध की ये परंपराएं हमें भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि का आभास कराती हैं।
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