हरियाणा: एक बेहद हैरान कर देने वाला मामला ऐसा आया है जहां एक शख्स ने खुद को अपने परिवार की मौत के गम में शौचालय में कैद कर लिया। आपको शायद इस बात पर यकीन नहीं हो रहा होगा परंतु ऐसा सच में हुआ है। मतलौडा के पंजाबी मोहल्ले में मानसिक रूप से अस्वस्थ भाई के साथ रहने वाले सुरेंद्र को जनसेवा दल ने बचा कर अपने यहां सहारा दिया। पहले माता-पिता फिर भाई की मौत के गम के कारण शख्स ने ऐसा किया। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला
जानकारी के मुताबिक मानसिक रूप से अस्वस्थ भाई के साथ रह रहे सुरेंद्र को अपने परिवार को खोने का गम इतना ज्यादा लगा कि उसने खुद को शौचालय में बंद कर लिया। जानकारी मिली है कि 48 वर्षीय सुरेंद्र उर्फ शैंटी और उसके बड़े भाई विजय मतलौडा के पंजाबी मोहल्ला के रहने वाले हैं। सुरेंद्र ने इस मामले में जानकारी दी की वह चार भाई और एक बहन थे। उसकी बड़ी बहन की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी, जबकि बड़ा भाई विजय मानसिक रूप से कमजोर है। परिवार में चारों में से किसी की शादी नहीं हुई थी। सुरेंद्र के पिता लख्मीचंद छोले-भटूरे और आइसक्रीम बेचकर परिवार का भरण-पोषण करते थे। 12 साल पहले उनकी भी मृत्यु हो गई थी। सुरेंद्र ने बताया कि उसका दूसरे नंबर का भाई अशोक एक लोन एजेंट के चक्कर में कर्जे में डूब गया और 5 साल पहले घर से फरार हो गया था। सुरेंद्र की मां की कोरोना के दौरान मृत्यु हो गई थी। सुरेंद्र ने कहा कि उसका तीसरे नंबर का भाई राजकुमार हिमाचल प्रदेश में हैंडलूम का काम करने के लिए गया था, जो पहले तीन माह पहले ही मतलौडा वापस आया था। वापस आने के बाद कुछ ज्ञात कारण से उसकी भी मौत हो गई। इस बात से सुरेंद्र को गहरा सदमा लगा। इसी कारण से उसने खुद को भाई की मौत के एक दिन बाद ही शौचालय में बंद कर लिया। इसी बीच उसका बड़ा भाई विजय जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है इधर-उधर से रोटी मांगकर खाने लगा। सुरेंद्र के कई दिनों तक भी शौचालय का दरवाजा न खोलने पर बीते रोज रविवार को आसपास के लोगों ने दोनों भाइयों के संबंध में जनसेवा दल के सदस्यों को इसकी जानकारी दी।
जानकारी के मुताबिक सुरेंद्र शौचालय में बंद रहकर सिर्फ नल का पानी पीता था। इतना ही नहीं उसको बाहर को आवाजों से नफरत हो गई थी। उसके जीने की इच्छा मानो जैसे खत्म हो गई थी। इस बात की जानकारी जैसे ही जनसेवा दल को प्राप्त हुई तो उन्होंने घर की छत से मकान में चढ़कर दोनों भाइयों को रेस्क्यू किया। इसके बाद उनको अपने आश्रम जिसका नाम आशियाना है वहां ले आए। दरअसल इस मामले की सूचना दल के चमन गुलाटी और कमल गुलाटी को एक फोन के द्वारा मिली। सूचना मिलते ही वह सुरेंद्र के घर पहुंच गए। इसके बाद दल ने वहां रहने वाले स्थानीय लोगों से बातचीत की, लेकिन कोई भी अंदर जाने को तैयार नहीं हुआ। दोनों भाईयों के कपड़े मल-मूत्र से भरे हुए थे। बदबू से अंदर घुसना भी मुश्किल हो रहा था। काफी साफ-सफाई करने के बाद दल ने दोनों भाईयों को रेस्क्यू किया और आर्दश नगर स्थित अपने आशियाने में सहारा दिया। आशियाना में सहारा देने के बाद दोनों को स्नान कराया और खाना खिलाया। इस सब के बीच विजय की हालत इतनी खराब थी कि वह केवल दो रोटी ही खा पाया। परंतु सुरेंद्र कुल 45 दिन से भूखा था इसलिए वह एक रोटी भी मुश्किल से खा पाया। इसके बाद दोनों की चिकित्सक से भी जांच कराई गई जिसके बाद पता चला कि काफी लंबे समय से खाना न खाने की वजह से दोनों की पाचन शक्ति कमजोर हो गई थी।
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