नई दिल्लीः महाभारत में अर्जुन को सबसे शक्तिशाली योद्धा बताया गया है। परन्तु एक ऐसा भी योद्धा था जिसने अर्जुन को पराजित किया था। वह कोई और नहीं बल्कि स्वयं अर्जुन का ही पुत्र था। महाभारत की कथा के अनुसार अर्जुन का मणिपुर के राजा यानी उनके पुत्र बभ्रुवाहन से युद्ध हुआ था। बभ्रुवाहन अर्जुन और चित्रांगदा के पुत्र थे।
महाभारत के अनुसार चित्रांगदा अर्जुन की पत्नियों में से एक थीं। विवाह के कुछ महीनों बाद जब अर्जुन नागलोक पहुंचे तो उनकी पत्नी नागकन्या उलूपी ने द्वेषवश अर्जुन को चित्रांगदा के विरुद्ध भड़काया। अर्जुन ने निराधार संदेह के कारण चित्रांगदा को उस समय त्याग दिया जब वह गर्भवती थी। तब चित्रांगदा ने निश्चय किया कि वह अर्जुन को हराकर इस अपमान का बदला लेंगी।
महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने अश्वमेध किया था। अर्जुन को घोड़े का रक्षक बनाया गया था। यज्ञ का घोड़ा जहां भी जाता, अर्जुन उसके पीछे-पीछे जाते। कई राजाओं ने पांडवों की अधीनता स्वीकार कर ली, जबकि कुछ ने मैत्रीपूर्ण संबंधों के आधार पर पांडवों को कर देना स्वीकार कर लिया। यज्ञ का घोड़ा भटकता हुआ मणिपुर पहुंच गया। यहां की राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन की पत्नी थीं और उनके बेटे का नाम बभ्रुवाहन था। बभ्रुवाहन उस समय मणिपुर का राजा था।
बभ्रुवाहन उस समय युवा था। अपने बाल स्वभाव के कारण उसने बिना परिणाम के बारे में सोचे ही अर्जुन पर बाण चला दिया और अर्जुन का सर धड़ से अलग कर दिया। तभी बभ्रुवाहन की मां चित्रांगदा भी वहां आ गई। चित्रांगदा ने देखा कि अर्जुन के शरीर में जीवन के कोई लक्षण नहीं हैं। अपने पति को मृत अवस्था में देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। जब बभ्रुवाहन को पता चला कि अर्जुन उसके पिता हैं तो उसे भी अपने किए पर ग्लानी हुई।
अर्जुन की मृत्यु से दुखी होकर चित्रांगदा और बभ्रुवाहन दोनों आमरण अनशन पर बैठ गए। तब नाग कन्या उलूपी ने संजीवन मणि बभ्रुवाहन को देते हुए कहा- इस मणि को अपने पिता अर्जुन की छाती पर रख दो। बभ्रुवाहन ने वैसा ही किया। उस मणि को छाती पर रखते ही अर्जुन पुनः जीवित हो गया।
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