नई दिल्ली : राजस्थान चुनाव में नामांकन सभा के दौरान दूदू विधायक बाबू लाल नागर की जुबान फिसल गई. उन्होंने सीएम अशोक गहलोत और राजस्थान कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के सामने अपने समर्थकों से कहा कि अगर उन्हें बोलना है तो कहें कांग्रेस पार्टी, अशोक गहलोत जिंदाबाद…, सोनिया गांधी और राहुल गांधी मुर्दाबाद… अब मत बोलें. इस समय का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. वायरल वीडियो पर बीजेपी ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस पर तंज कसा है और आंतरिक कलह का आरोप लगाया है.
इस बार भी कांग्रेस ने दूदू सीट से मौजूदा विधायक बाबू लाल नागर पर भरोसा जताया है. गुरुवार को उन्होंने नामांकन दाखिल करने के बाद शक्ति प्रदर्शन कार्यक्रम किया. मौजमाबाद रोड स्थित श्रीराम रिसॉर्ट में नामांकन सभा में बड़ी संख्या में उनके समर्थक शामिल हुए. इस दौरान सीएम अशोक गहलोत और कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी मौजूद रहे. जब सुखजिंदर सिंह रंधावा को सभा को संबोधित करने के लिए मंच पर बुलाया गया. उस वक्त समर्थक बाबू लाल नागर जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे. जब रंधावा के भाषण के दौरान भी समर्थक शांत नहीं हुए तो रंधावा ने मंच पर आकर समर्थकों से शांत रहने की अपील की और यहीं पर उनकी जुबान फिसल गई.
समर्थकों को शांत करने के लिए दूदू विधायक अचानक मंच पर माइक लेकर आगे आ गए. उन्होंने बाबू लाल नागर जिंदाबाद के नारे लगा रही भीड़ को शांत रहने का इशारा करते हुए कहा- ‘अगर कहना है तो कहो कांग्रेस पार्टी-अशोक गहलोत जिंदाबाद, सोनिया गांधी-राहुल गांधी मुर्दाबाद…अभी मत कहो।’ खास बात यह है कि दूदू विधायक बाबू लाल नागर की नामांकन सभा के दौरान जब उनकी जुबान फिसली तो मंच पर सीएम अशोक गहलोत, प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और बगरू से कांग्रेस प्रत्याशी गंगा देवी समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे, लेकिन किसी ने नहीं टोका. . इसका एहसास खुद बाबू लाल नागर को भी नहीं हुआ.
कांग्रेस में सीएम पद की दौड़ को लेकर चल रही अंदरूनी खींचतान के बीच दूदू विधायक बाबू लाल नागर का यह वायरल वीडियो लोगों के गले नहीं उतर रहा है. कांग्रेस समर्थक इसे विधायक की जुबान फिसलना मान रहे हैं, हालांकि बीजेपी का आरोप है कि यह वीडियो कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह का उदाहरण है. ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस विधायक की इस तरह फिसली जुबान आलाकमान के प्रति गुस्से का इजहार भी हो सकता है. अगर ऐसा है तो यह इस बात का भी संकेत है कि चुनाव के बाद अगर आलाकमान ने गहलोत का विकल्प ढूंढने की कोशिश की तो उन्हें विधायकों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है
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