6 नवम्बर 1949 को संविधान सभा को संविधान की फाइनल कॉपी सौंपी जानी थी और 25 नवम्बर को डा. भीमराव अम्बेडकर सभा को सम्बोधित कर रहे थे। तब उन्होंने अपनी उस ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों को तो धन्यवाद दिया ही, जिसके वो चेयरमेन थे, दो और लोगों को धन्यवाद और संविधान निर्माण का श्रेय दिया, जिनके नाम पढकर आज की जनरेशन चौंक सकती है
नई दिल्ली. 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा को संविधान की फाइनल कॉपी सौंपी जानी थी और 25 नवम्बर को डा. भीमराव अम्बेडकर सभा को सम्बोधित कर रहे थे। तब उन्होंने अपनी उस ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों को तो धन्यवाद दिया ही, जिसके वो चेयरमेन थे, दो और लोगों को धन्यवाद और संविधान निर्माण का श्रेय दिया, जिनके नाम पढकर आज की जनरेशन चौंक सकती है। पहला नाम था बीएन राव का और दूसरा एसएन मुखर्जी का, चूंकि बीएन राव ने उनके साथ काम नहीं किया था, मुखर्जी ने ही उनके बाद के काम को आसान बनाया, इसलिए उन्होंने मुखर्जी की तारीफ ज्यादा की। लेकिन अपने भाषण में डा. अम्बेडकर ने फिर भी बीएन राव को ही सबसे पहले धन्यवाद दिया बल्कि उन्हें ‘सर’ भी कहा, और इस सम्मान की वजह भी काफी खास थी।
पहले पढिए डा. अम्बेकर का वो ऐतिहासिक भाषण, ‘’ “The credit that is given to me does not really belong to me. It belongs partly to Sir B. N. Rau, the Constitutional Adviser to the Constituent Assembly who prepared a rough draft of the Constitution for the consideration of the Drafting Committee. A part of the credit must go to the members of the Drafting Committee who, as I have said, have sat for 141 days and without whose ingenuity of devise new formulae and capacity to tolerate and to accommodate different points of view, the task of framing the Constitution could not have come to so successful a conclusion. Much greater, share of the credit must go to Mr. S. N. Mukherjee, the Chief Draftsman of the Constitution. His ability to put the most intricate proposals in the simplest and clearest legal form can rarely be equalled, nor his capacity for hard work.’’।
सबसे पहले बाबा साहब ने साफ कहा कि ये क्रेडिट जो मुझे दिया जा रहा है, वाकई में मुझसे ताल्लुक नहीं रखता है, इसका एक हिस्सा सर बीएन राव के हिस्से जाता है। दरअसल ड्राफ्टिंग कमेटी ने संविधान का फायनल रूप जरूर दिया था लेकिन उसको संविधान का पहला ड्राफ्ट इन्हीं सर बीएन राव ने बनाकर दिया था। आप संविधान के बारे में अगर पढ़ते होंगे कि इस देश से मूलभूत अधिकार लिए, नीति निर्देशक तत्व यहां से लिए, संसदीय व्यवस्था इस देश से ली, तो इन सभी देशों में जाकर वहां के संविधान विशेषज्ञों, जजों और राजनीतिज्ञों से मिलने का काम, वहां के संविधानों का अध्ययन करने का बेसिक काम बीएन राव ने ही किया था। जो संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बनाए गए थे। जैसा कि बाबा साहब ने अपने भाषण में बोला कि उनके ड्राफ्ट पर ड्राफ्टिंग कमेटी ने विचार किया, यही सच है। राव के संविधान के ड्राफ्ट में कुल 243 आर्टिकल्स और 8 सैक्शंस थे, जिनको बेस बनाकर ड्राफ्टिंग कमेटी उन्हें 315 आर्टिकल्स तक पहुंचाया। बाद में संविधान सभा में बहस और 2473 संशोधनों के बाद आर्टिकल्स की संख्या 395 तक पहुंच गई, सैक्शंस 8 ही रहे।
दिलचस्प बात है कि जिस सर बीएन राव को इस योग्य समझा गया कि उनको संविधान का पहला ड्राफ्ट बनाने का काम दिया गया, जिसने एक तरह से संविधान का मूल ढांचा तैयार किया, जिसको डा. अम्बेडकर ने पहला क्रेडिट दिया, उसी बीएन राव की मूर्तियां तो छोड़िए, कोई उनकी तस्वीर भी नहीं पहचानता होगा। 95 फीसदी युवा जानता भी नहीं होगा। क्योंकि वो राजनेता नहीं थे, बल्कि एक सिविल सर्विस ऑफिसर थे, ज्यूडियरी को सालों उन्होंने अपनी सेवाएं दी, आजादी से पहले देश के तमाम राज्यों की प्रशासनिक समस्याओं को सुलझाया और आजादी के बाद देश की और फिर इंटरनेशनल लेवल पर भी, लेकिन अपने पीछे समर्थकों या अनुयायियों की जमात तैयार करके नहीं छोड़ गए। राजनीति के करीब रहते हुए भी हर वक्त समस्याओं को सुलझाने में ही लगे रहे।
देश के युवाओं को ताज्जुब होगा कि यूनाइटेड नेशंस की जिस सिक्योरिटी काउंसिल में सदस्य बनने के लिए भारत सालों से हाथ मार रहा है, ये बंदा बीएन राव उसका प्रेसीडेंट रह चुका है और कई बड़े इंटरनेशनल फैसले उसने उस वक्त लिए। इतना ही नहीं बीएन राव को उन दिनों यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेट्री जनरल की पोस्ट के लिए सबसे योग्य माना जाता था। लेकिन भारत सरकार ने कहने पर इंटरनेशनल कोर्ट हेग का इलेक्शन लडे और जज बनकर चले गए और बाद में बीमारी से स्विटजरलैंड के ज्यूरिख में उनकी मौत हो गई। आपको ये जानकर हैरत होगी कि इस शख्स ने ना सिर्फ भारत के संविधान का पहला ड्राफ्ट तैयार किया बल्कि वर्मा (म्यांमार) की सरकार की गुजारिश पर उनके संविधान का भी ड्राफ्ट तैयार किया था।
बीएन राव यानी बेनेगल नरसिंह राव बंगलौर के एक शिक्षित परिवार में पैदा हुए थे, उनके पिता बेनेगल राघवेन्द्र राव विदेशी चिकित्सा व्यवस्था से निकले देश के शुरुआती डॉक्टर्स में थे। उनके एक भाई बी शिवा राव जो जाने माने पत्रकार थे, पहली लोकसभा में चुनकर पहुंचे थे तो दूसरे भाई बी रामा राव रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के चौथे गर्वनर बने थे। खुद बीएन राव काफी प्रतिभाशाली थे, उन्होंने हाईस्कूल में पूरी मद्रास प्रेसीडेंसी को टॉप किया था। ग्रेजुएशन उन्हौंने ट्रिपल फर्स्ट डिग्री से किया फिजिक्स, संस्कृत और इंगलिश, अगले साल यानी 1906 में मैथ से भी। उसके बाद वो एक स्कॉलरशिप पर ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज चले गए। 1909 में उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास की और आईसीएस ऑफिसर बनकर भारत आ गए।
पहले ईस्ट बंगाल के कई जिलों में जज रहे, फिर आसाम सरकार के लिए अलग अलग कई पदों पर काम किया। 1928-29 में उन्हें साइमन कमीशन के टूअर के लिए फाइनेंस सपोर्ट का मेमोरेंडा ड्राफ्ट तैयार करने को कहा गया, और उनकी तरफ से 1933 में तीसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद ब्रिटिश संसद के सामने केस रखने की जिम्मेदारी दी गई। दो साल वो लंदन में रहे। इतने सारे प्रशासनिक अनुभव के बाद राव को 1935 में भारत आते ही 1935 एक्ट ऑफ इंडिया ड्राफ्ट करने के लिए रिफॉर्म ऑफिस मे नियुक्त कर दिया गया और उसके बाद पांच साल के लिए कोलकाता हाईकोर्ट। एक तरह से वो लंदन की संसद से लेकर देश के निचले स्तर तक अंग्रेजी सरकार की एक एक कार्यप्रणाली समझ चुके थे, खासतौर पर कानूनों को। बाद में उन्हें रेलव कर्मचारियों के भत्ते सम्बंधी नियम बनाने और हिंदू लॉ पर भी काम करने के प्रोजेक्ट्स दिए गए।
1944 में बीएन राव इंडियन सिविल सर्विस से रिटायर हुए तो प्रशासनिक पकड़ के मामले में उनकी काफी ख्याति हो चुकी थी। तो उसी साल उन्हें कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अपना नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। लेकिन उनकी महाराजा से बनी नहीं और अगले साल ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कुछ समय तक अंग्रेजी सरकार के रिफॉर्म ऑफिस और गर्वनर जनरल के ऑफिस में बतौर सेक्रेट्री काम करने के बाद उन्हें एक महती जिम्मेदारी सौंपी गई, वो थी संविधान सभा के कॉन्स्टीट्यूशनल एडवाइजर की। उनको खुद नहीं पता था कि उनके संविधान का ये ड्राफ्ट करोड़ों लोगों की जिंदगी बदलने जा रहा है।
भले ही बीएन राव ने किसी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया, कभी अंग्रेजों की नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया, राजनीति ज्वॉइन नहीं की, लेकिन उनके दिमाग का लोहा अंग्रेजी सरकार तो क्या हर भारतीय दिग्गज मानता था। तभी तो डा. अम्बेडकर ने उनको सर कहकर सम्बोधित किया। बीएन राव ने काफी ईमानदारी से काम किया, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इंग्लैंड आदि देशों का दौरा करने विद्वानों से मुलाकात की और भारतीय संविधान का पहला ड्राफ्ट तैयार किया। वो ड्राफ्ट तैयार होते ही पंडित नेहरू ने उन्हें फौरन यूएन में भारत का प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया। डा. अम्बेडकर ने जिस दूसरे व्यक्ति की तारीफ की थी एसएन मुखर्जी, वो संविधान के ड्राफ्ट्समैन थे। जो जो ड्राफ्ट कमेटी आपसी मीटिंग्स या संविधान सभा के सुझावों, संशोधनों के बाद तय करतीं, उन्हें बड़ी सरलता से वो संविधान में शामिल करते जाते। डा. अम्बेडकर का काम काफी हलका कर दिया था उन्होंने, ये बड़ी वजह थी कि बाबा साहब ने उनकी जमकर तारीफ की। लेकिन आज इन दो व्यक्तियों के फोटोज अगर आप देश के किसी भी शहर या संस्थाओं में ढूंढने निकले तो ढूंढे नहीं मिलेंगे, गूगल में भी बीएन राव असली कौन है ढूंढना मुश्किल पड़ जाएगा, एस एन मुखर्जी का तो भूल ही जाइए.