Jama Masjid Name change: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद एक बार फिर सुर्खियों में है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने इस मस्जिद का नाम बदलकर ‘जुमा मस्जिद’ करने का फैसला लिया है. इसके लिए एक नया साइनबोर्ड तैयार किया गया है. जो जल्द ही मस्जिद परिसर में लगाया जाएगा. यह कदम मस्जिद के ऐतिहासिक और कानूनी विवादों के बीच उठाया गया है. जिसने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा को जन्म दिया है.
शाही जामा मस्जिद जो मुगल काल की एक संरक्षित धरोहर है. उसको 1920 से एएसआई के संरक्षण में रखा गया है. हाल ही में एएसआई ने इस मस्जिद के लिए एक नया साइनबोर्ड भेजा. जिसमें ‘शाही जामा मस्जिद’ की जगह ‘जुमा मस्जिद’ लिखा गया है. सूत्रों के अनुसार यह बदलाव एएसआई के आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज नाम के आधार पर किया गया है. नया साइनबोर्ड अभी संभल की सत्यव्रत पुलिस चौकी में रखा गया है और इसे शीघ्र ही स्थापित करने की योजना है. इस कदम को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि यह मस्जिद के आसपास चल रहे विवादों को शांत करने की दिशा में एक प्रयास हो सकता है.
शाही जामा मस्जिद को 1526 में मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल में बनाया गया था. यह दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी जीवित मुगल मस्जिदों में से एक मानी जाती है. इतिहासकारों के अनुसार इसे बाबर के सेनापति मीर हिंदू बेग ने बनवाया था. यह मस्जिद अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है. हालांकि पिछले कुछ समय से यह एक विवाद का केंद्र रही है. जहां कुछ पक्षों ने दावा किया है कि यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाई गई थी.
संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर पिछले साल नवंबर में हिंसा भड़क उठी थी. जब एक कोर्ट के आदेश पर इसका सर्वेक्षण किया गया था. हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि यह मस्जिद भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि को समर्पित हरिहर मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई है. इस विवाद के बाद से मस्जिद का प्रबंधन और उसकी स्थिति को लेकर कई सवाल उठे हैं. नाम परिवर्तन को कुछ लोग इस विवाद से जोड़कर देख रहे हैं. हालांकि एएसआई ने इसे केवल प्रशासनिक बदलाव बताया है.
नाम बदलने की खबर के बाद संभल में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष जफर अली ने कहा ‘हम एएसआई के साथ सहयोग कर रहे हैं. यह नाम बदलाव उनके रिकॉर्ड के अनुसार है.’ वहीं कुछ स्थानीय लोगों का मानना है कि यह कदम क्षेत्र में शांति बनाए रखने में मदद कर सकता है. दूसरी ओर कुछ पक्ष इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर सवाल उठा रहे हैं. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बदलाव मस्जिद के आसपास के तनाव को कम करता है या नई बहस को जन्म देता है.
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