Bihar Bahubali Mohammad Shahabuddin: बिहार के इतिहास में नब्बे का दशक एक ऐसा दौर था. जब अपराध और अराजकता ने राज्य को अपनी गिरफ्त में ले रखा था. सड़कों पर लूटपाट, अपहरण, रंगदारी और हत्या जैसी घटनाएं रोजमर्रा की बात हो गई थीं. इसी माहौल में एक नाम तेजी से उभरा जो दहशत का पर्याय बन गया. मोहम्मद शहाबुद्दीन. सिवान जिले में ‘साहेब’ के नाम से मशहूर शहाबुद्दीन ने अपनी क्रूरता और बाहुबल से न सिर्फ आम लोगों के दिलों में खौफ पैदा किया बल्कि पुलिस और प्रशासन को भी अपने सामने झुकने पर मजबूर कर दिया.

अपराध की दुनिया में पहला कदम

मोहम्मद शहाबुद्दीन का जन्म 10 मई 1967 को सिवान के प्रतापपुर गांव में हुआ था. पढ़ाई में होशियार शहाबुद्दीन ने विज्ञान में एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की. लेकिन उनका रास्ता अपराध की ओर मुड़ गया. 19 साल की उम्र में 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मामला दर्ज हुआ. कॉलेज के दिनों से ही वे छोटे-मोटे अपराधों में शामिल हो गए थे. धीरे-धीरे उनका दबदबा बढ़ता गया और वे सिवान में एक समानांतर सत्ता के रूप में उभरे. हुसैनगंज थाने में उनकी हिस्ट्रीशीट खुली और उन्हें ‘ए’ श्रेणी का अपराधी घोषित किया गया.

लालू के संरक्षण में सियासी उड़ान

शहाबुद्दीन की असली ताकत तब सामने आई. जब वे लालू प्रसाद यादव के करीब आए. 1990 में जनता दल के युवा विंग से जुड़कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा और उसी साल बिहार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने. 1995 में दोबारा विधायक चुने गए और 1996 में पहली बार लोकसभा सांसद बनकर संसद पहुंचे. लालू की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के गठन के बाद उनकी ताकत और बढ़ी. 1996 से 2004 तक वे लगातार चार बार सिवान से सांसद चुने गए. RJD सरकार के संरक्षण में शहाबुद्दीन को कानूनी कार्रवाई से छूट मिलती रही. जिसने उन्हें ‘अजेय’ बना दिया.

सिवान में खौफ का साम्राज्य

सिवान में शहाबुद्दीन का राज ऐसा था कि उनकी इजाजत के बिना कुछ भी संभव नहीं था. वे न सिर्फ अपराधी थे बल्कि एक समानांतर प्रशासन चलाते थे. जमीन विवाद से लेकर पारिवारिक झगड़ों तक उनकी ‘कंगारू कोर्ट’ में फैसले सुनाए जाते थे. 2001 में प्रतापपुर गांव में पुलिस छापे के दौरान उनके गुर्गों ने पुलिस पर हमला किया. जिसमें दो पुलिसकर्मियों सहित 10 लोग मारे गए. इस घटना के बाद भी शहाबुद्दीन को गिरफ्तार नहीं किया जा सका बल्कि तत्कालीन राबड़ी देवी सरकार ने सिवान के सभी वरिष्ठ अधिकारियों का तबादला कर दिया. उनकी दहशत का आलम यह था कि बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी तक उनसे डरते थे.

क्रूरता की मिसाल-तेजाब कांड

शहाबुद्दीन की क्रूरता की सबसे भयावह मिसाल 2004 का तेजाब कांड है. चंदा बाबू के दो बेटों गिरीश और सतीश का अपहरण कर उन्हें तेजाब से नहलाकर मार डाला गया. इस मामले में उन्हें उम्रकैद की सजा हुई. 2014 में चंदा बाबू के तीसरे बेटे राजीव रोशन जो इस हत्याकांड के गवाह थे. उनकी भी हत्या कर दी गई. इसके अलावा 1997 में JNU के पूर्व छात्र नेता चंद्रशेखर प्रसाद की हत्या और 1999 में CPI(ML) कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण जैसे कई संगीन मामले उनके नाम जुड़े.

कानून के शिकंजे में शहाबुद्दीन

2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसा. नवंबर 2005 में दिल्ली में संसद सत्र के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया. कई मामलों में सजा सुनाई गई. जिसमें छोटे लाल गुप्ता के अपहरण के लिए उम्रकैद और तेजाब कांड में भी आजीवन कारावास शामिल है. 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें सिवान जेल से दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट किया गया. 1 मई 2021 को कोविड-19 की जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हो गई.

खौफ का दूसरा नाम

शहाबुद्दीन का प्रभाव सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं था. वे सवर्ण जमींदारों के समर्थन से CPI(ML) के खिलाफ खड़े हुए और मुस्लिम-यादव (MY) वोट बैंक को मजबूत करने में RJD के लिए अहम रहे. उनकी दहशत इतनी थी कि गवाह उनके खिलाफ बयान देने से डरते थे. सिवान में उनका नाम लेते ही लोग सिहर उठते थे. उनकी पत्नी हिना शहाब ने उनके बाद सियासत में कदम रखा लेकिन वे लोकसभा चुनावों में सफलता हासिल नहीं कर सकीं.

यह भी पढे़ं-  ‘अंडे फेंके गए’…पालघर में रामनवमी जुलूस पर हमला, पुलिस ने दर्ज किया केस