नई दिल्ली: भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट और इसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में 5 लाख लोगों की मौत का एक चौंकाने वाला अध्ययन सामने आया है। यह अध्ययन भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी कमी से उत्पन्न खतरनाक स्वास्थ्य प्रभावों को उजागर करता है। जानकारी के मुताबिक एक शोध […]
नई दिल्ली: भारत में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट और इसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में 5 लाख लोगों की मौत का एक चौंकाने वाला अध्ययन सामने आया है। यह अध्ययन भारतीय उपमहाद्वीप में गिद्धों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी कमी से उत्पन्न खतरनाक स्वास्थ्य प्रभावों को उजागर करता है। जानकारी के मुताबिक एक शोध का बाद पता चला है कि भारत में गिद्धों की संख्या में 1990 के दशक के मध्य में बहुत तेजी से गिरावट आई। गिद्धों की कुछ प्रजातियां तो 99.9% तक कम हो गई हैं।
भारत में गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों – भारतीय गिद्ध (Gyps indicus), लंबी चोंच वाला गिद्ध (Gyps tenuirostris), और स्लेंडर-बिल्ड गिद्ध (Gyps bengalensis) – की आबादी में 1990 के दशक के मध्य में तेजी से गिरावट आई। इसका मुख्य कारण जानवरों में उपयोग होने वाली दर्दनिवारक दवा डाइक्लोफेनाक थी। जब गिद्ध उन मवेशियों के शव खाते थे जिनमें यह दवा मौजूद होती थी, तो उनकी किडनी फेल हो जाती थी और वे मर जाते थे।
गिद्धों की कमी के कारण भारत के कई हिस्सों में पशुओं के शव बिना निपटान के सड़ने लगे, जिससे स्थानीय वातावरण में गंदगी और बीमारी फैलने लगी। इसके कारण आवारा कुत्तों की संख्या में वृद्धि हुई, जो कि रैबीज (रेबीज) और अन्य बीमारियों का प्रमुख वाहक बन गए। एक अध्ययन के अनुसार, गिद्धों की अनुपस्थिति के कारण भारत में हर साल लगभग 1 लाख अतिरिक्त मौतें हुईं हैं। जानकारी के मुताबिक जितनी तेजी से गिद्ध 90 के दशक के बाद विलुप्त हुए हैं भारत में शायद कोई दूसरा जीव उतनी तेजी से गायब हुआ हो।
इस अध्ययन से यह भी पता चला कि गिद्धों की कमी ने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य संकट पैदा किया है। यह अनुमान लगाया गया है कि गिद्धों की कमी के कारण दुनिया भर में लगभग 5 लाख लोगों की जान गई है। यह आंकड़ा उन मौतों का प्रतिनिधित्व करता है जो गिद्धों द्वारा मवेशियों के शव न खाने के कारण उत्पन्न हुई बीमारियों और संक्रमणों के कारण हुई हैं।
हालांकि भारत सरकार ने 2006 में डाइक्लोफेनाक पर प्रतिबंध लगा दिया था और इसे गिद्धों के लिए सुरक्षित वैकल्पिक दवाओं से बदलने की कोशिश की गई है, लेकिन गिद्धों की आबादी में अभी तक पूर्ण सुधार नहीं हुआ है। गिद्धों की संख्या को पुनः बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक संरक्षण प्रयासों और वित्तीय समर्थन की आवश्यकता है। इस अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गिद्ध जैसे ‘अप्रिय’ समझे जाने वाले जीवों का संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अनिवार्य सेवाएं प्रदान करते हैं, जो अंततः मानव जीवन को भी प्रभावित करती हैं।
गिद्धों की घटती आबादी और इसके कारण उत्पन्न स्वास्थ्य संकट एक गंभीर मुद्दा है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह अध्ययन न केवल जैव विविधता संरक्षण के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक प्रजाति की कमी पूरी मानवता पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। इस प्रकार, गिद्धों और अन्य महत्वपूर्ण प्रजातियों के संरक्षण के लिए ठोस और दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है।
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