1296 ईस्वी में जलालुद्दीन से दिल्ली की गद्दी हथियाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी पर सत्ता विस्तार का नशा ऐसा सवार हुआ कि इसने न तो राज धर्म निभाया और न ही एक शासक होने की जिम्मेदारियां पूरी कीं.
नई दिल्ली. फिल्म पद्मावती पर फसाद ना होता, तो अलाउद्दीन खिलजी का गुजरात पर हमला इतिहास की किताबों में ही दफन रहता. गुजरात में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी में अब अलाउद्दीन खिलजी की क्रूरता भी चर्चा में है. वोट की राजनीति करने वाले नेताओं के बीच होड़ मची है कि कौन खिलजी का महिमामंडन परदे पर देखना चाहता है और कौन इसके खिलाफ है.
अलाउद्दीन खिलजी नाम एक लेकिन इस नाम के साथ इतिहास की किताबों में विवादों की इतनी लंबी फेहरिस्त जुड़ी है कि इसे ज्यादातर इतिहासकारों ने नायक नहीं बल्कि खलनायक ही बताया है. सत्ता को लेकर इस बर्बर बादशाह की भूख इस कदर थी कि इसने अपने चाचा और ससुर जलालुद्दीन खिलजी को मौत के घाट उतार दिया. 1296 ईस्वी में जलालुद्दीन से दिल्ली की गद्दी हथियाने के बाद इसपर सत्ता विस्तार का नशा ऐसा सवार हुआ कि इसने न तो राज धर्म निभाया और न ही एक शासक होने की जिम्मेदारियां पूरी कीं। दिल्ली की गद्दी पर काबिज होने के बाद अलाउद्दीन का सबसे पहला निशाना बना पश्चिम भारत का गुजरात. 1297 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने सबसे पहले गुजरात पर चढ़ाई की. गुजरात की जीत का जिम्मा उसने अपने दो सेनानायक नुसरत खां और उलूग खां को सौंपा दिया.
दोनों सेना नायकों के नेतृत्व में 14 हजार घुड़सवार और करीब 20 हजार पैदल सैनिकों ने गुजरात कूच किया. गुजरात के अहमदाबाद के पास बघेल वंश के राजा कर्ण और खिलजी सेना में भीषण युद्ध हुआ. लेकिन आखिरकार खिलजी की बर्बर सेना के आगे राजा कर्ण की सेना टिक नहीं पाई. गुजरात पर धावा बोलने के बाद अलाउद्दीन खिलजी की फौज ने नुसरत खान और उलूग़ खान की अगुवाई में गुजरात के शहरों को जमकर लूटा. वाघेला राजवंश के राजा कर्ण को आसपल्ली यानी आज के अहमदाबाद के पास परास्त करने के बाद खिलजी की फौज वहशीपन पर उतारू थी.
उलूग़ खान की अगुवाई में खिलजी की फौज ने सबसे पहले अनाहिलावाड़ी यानी आज के पाटन को निशाना बनाया, जो उस वक्त गुजरात का सबसे संपन्न इलाका था. यहीं पर खिलजी की फौज ने महारानी कमला देवी समेत राजा कर्ण की पत्नियों को गुलाम बनाया और सभी माल-असबाब के साथ महारानी को भी अपने साथ दिल्ली ले जाकर खिलजी के हरम में पहुंचा दिया. दूसरी तरफ खिलजी के कमांडर नुसरत खान ने खंभात पर कब्ज़ा करके पूरे शहर को लूटा. खंभात में ही नुसरत खान ने मलिक काफूर को बंदी बनाया, जो बाद में अलाउद्दीन खिलजी के विवादास्पद समलैंगिंक रिश्तों का साथी बना.
गुजरात और वाघेला वंश की संपदा और सम्मान को एक बार रौंदने से खिलजी का मन नहीं भरा. खिलजी के लौटने के बाद राजा कर्ण ने धीरे-धीरे अपने राज्य पर वापस कब्जा करना शुरू किया था. तभी खिलजी की गंदी और क्रूर नज़र दोबारा गुजरात पर गड़ गई. चौदहवीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अब्दुल मलिक इसामी के मुताबिक, 1301 में खिलजी ने रणथंभौर के किले पर कब्ज़ा करके उसे मलिक शाहीन के हवाले कर दिया था, लेकिन मलिक शाहीन को पड़ोस के पाटन के राजा कर्ण से डर लगता था इसलिए वो भाग गया. 1304 में खिलजी की फौज ने पाटन पर दोबारा हमला किया. इस बार खिलजी की फौज की कमान मलिक अहमद झीटम उर्फ कारा बेग के हाथों में थी. राजा कर्ण को फिर से राज्य छोड़कर दर-बदर भटकना पड़ा. इस बार खिलजी की फौज ने राजा कर्ण और महारानी कमला देवी की बेटी देवला देवी को बंदी बनाया और अपने साथ दिल्ली ले गई.
गुजरात में आक्रांता बने अलाउद्दीन खिलजी का बर्बर इतिहास सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है. इतिहास के पन्नों में उसकी कई घटनाएं काले अक्षरों से लिखी गई हैं. गुजरात अभियान के दौरान अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने यहां बड़े पैमाने पर कत्लेआम मचाया. कई बड़े बड़े मंदिरों को तोड़ डाला. इनमें गुजरात का सोमनाथ मंदिर सबसे प्रमुख है. कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर अलाउद्दीन ने कई मस्जिद की सीढ़ियों पर बिछा दिया था. इतना ही नहीं, गुजरात में अलाउद्दीन की उत्पाती सेना ने करीब बीस हजार हिंदू लड़कियों को अपना गुलाम बना लिया.
पद्मावती विवाद पर शबाना आजमी ने तोड़ी चुप्पी, कहा गोवा फिल्म फेस्टिवल का बहिष्कार करे इंडस्ट्री