जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ का नज़ारा इस वक़्त बेहद भयावह है. वहाँ दीवारें दरक रहीं हैं और पूरा शहर जमीन में धंस रहा है. आलम ऐसा है कि वहाँ घरों की दीवारों को चीरकर पानी बह रहा है. बदरीनाथ धाम से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित जोशीमठ से कई ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जो […]
जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ का नज़ारा इस वक़्त बेहद भयावह है. वहाँ दीवारें दरक रहीं हैं और पूरा शहर जमीन में धंस रहा है. आलम ऐसा है कि वहाँ घरों की दीवारों को चीरकर पानी बह रहा है. बदरीनाथ धाम से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित जोशीमठ से कई ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जो पूरे देश को डरा रही हैं. लैंडस्लाइड और दरकती दीवारों के चलते कई इलाकों में लोग बेघर हो रहे हैं और दहशत में जी रहे हैं. घरों की दरारें लोगों को बेख़ौफ़ रहने नहीं दे रही हैं. लोग अपने-अपने घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं. अब बात करते हैं उत्तराखंड की उन बड़ी तबाही की जिनके घाव जोशीमठ के तहत हरे हो गए हैं लेकिन सरकारें आज भी बेखबर हैं।
साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा उत्तराखंड के इतिहास की सबसे खौफनाक दुर्घटना है। बाढ़ ने हजारों लोगों की जान ले ली। किसी को संभलने का मौका नहीं मिला। जो जहां था वहीं दफना दिया गया। कई महीनों तक लोगों की तलाश में अभियान चलाया गया। वहां दबे लोगों के कंकाल आज भी मिलते हैं। राज्य के ज्ञात इतिहास में यह सबसे बड़ी आपदा मानी गई है। इसमें हजारों लोग और मवेशी मलबे में दब गए और बहते पानी में डूब गए।
सैकड़ों होटल और धर्मशालाएं और हजारों मोटर वाहन नष्ट हो गए। एक आंकड़े के मुताबिक इस आपदा में 3886 लोग मारे गए या लापता हो गए। इनमें से सिर्फ 644 लाशें या कंकाल मिले थे। 3,242 लोगों का कोई पता नहीं चला है। इसके बाद इन सभी लोगों को मृत मानकर इनके परिजनों को मुआवजा दिया गया। राज्य सरकार द्वारा 18 जुलाई 2013 को जारी आंकड़ों के अनुसार इस आपदा में लगभग 13000 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया गया है।
• उत्तरकाशी का भूकंप
20 अक्टूबर 1991 को उत्तरकाशी में रिक्टर पैमाने पर 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था। जिससे भारी जनहानि हुई। भूकंप ने उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। एक सरकारी आंकड़े के अनुसार, उस दुर्घटना में 768 लोग मारे गए थे और हजारों घर नष्ट हो गए थे। कई लोग हमेशा के लिए बेघर हो गए हैं। उस दिन को याद कर आज भी लोग सहम जाते हैं
18 अगस्त 1998 को उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में भारी तबाही हुई थी। जिले के मालपा गांव में चट्टान टूट गई थी। इस आपदा में 225 लोगों की मलबे में दबकर मौत हो गई थी. मृतक लोगों में से करीब 55 लोग मानसरोवर यात्री थे। इस घटना के बाद मिट्टी और चट्टानों के मलबे ने शारदा नदी के पानी के बहाव को काट दिया और इससे पानी कई गांवों में घुस गया। इसके बाद भारी नुकसान हुआ। यह घटना उत्तराखंड के लिए भी कभी न भूल पाने वाली आपदा है।
साल 1999 में, पिथौरागढ़ मालपा भूस्खलन के बाद, चमोली जिले में रिक्टर पैमाने पर 6.8 तीव्रता का एक और बड़ा भूकंप आया। इसमें कुल 100 लोगों की जानें चली गई थी। भूकंप के असर से चमोली जिले के अलावा रुद्रप्रयाग जिले को भी भारी नुकसान पहुंचा है. भूकंप के कारण नदियों का रास्ता बदल गया और पानी उनके मुहाने से सटे कई कस्बों में घुस गया। भूकंप की तीव्रता इतनी तेज थी कि सड़कों और इमारतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गईं।
18 सितंबर 1880 को नैनीताल के मल्लीताल क्षेत्र में भयानक भूस्खलन हुआ। इस आपदा में 151 लोग जिंदा दब गए थे। इनमें 108 भारतीय और 43 ब्रिटिश नागरिक भी शामिल थे। भूस्खलन के मलबे से यहां का प्रसिद्ध नैनादेवी मंदिर भी प्रभावित हो गया था।
उत्तराखंड की इन आपदाओं ने राज्य को गहरे प्राकृतिक घाव दिए हैं, यह राज्य काफी हद तक संभल भी चुका है लेकिन सरकारों ने इन त्रासदियों से सबक नहीं सीखा। वैज्ञानिक अध्ययनों की कई चौंकाने वाली रिपोर्टें आज धूल फांक रही हैं। परिणाम आज जोशीमठ के रूप में सबके सामने हैं और सरकारें बेफिक्र और जिंदगियां बेबस, एक और त्रासदी का इंतजार करने को मजबूर.