नई दिल्ली : गुजरात दंगों को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ SIT की चार्जशीट कई बड़े खुलासे कर रही है. SIT गुजरात हाईकोर्ट में अपनी चार्जशीट दायर की है. इस चार्ज शीट में तीस्ता पर लगे सभी गंभीर आरोपों पर कोर्ट को प्रमाण दिए गए हैं.
इस चार्जशीट SIT ने खुलासा किया है कि तीस्ता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत की सजा दिलवाने की गहरी साजिश रची थी. इस पूरी साजिश में दो चेहरे, पहला पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार और दूसरा संजीव भट्ट भी तत्कालीन सरकार का ही हिस्सा थे. यही दोनों समय-समय पर तीस्ता को फर्जी दस्तावेज तैयार कर ऑफिशियल एंट्री के साथ भेजते थे. इन आरोपों में फर्जी दस्तावेजों, फर्जी एफिडेविट तैयार करने की बात कही गई है.
जिसके लिए बाकायदा वकीलों की फौज तैयार की गई थी. जो घटनाएं कभी घटी ही नहीं उन्हें सच साबित करने के लिए और पीड़ितों को गुमराह करने के लिए काल्पनिक कहानियों पर हस्ताक्षर लिए गए. इन दस्तावेजों की तर्ज़ पर तीस्ता पीड़ितों को अपने साथ मिला लेती थीं और अगर कोई पीड़ित तैयार नहीं होता था उसे डराया धमकाया जाता था. रिपोर्ट में पूर्व आईपीएस आरबी श्रीकुमार द्वारा एक गवाह को फ़ोन कर धमकाने की बात कही गई है.
श्रीकुमार ने गवाह से फ़ोन पर तीस्ता से सुलह करने के लिए कहा था और ऐसा ना करने पर मुसलमान तेरे विरोधी बनेंगे की धमकी भी दी गई थी. आतंकवादियों का नाम लेकर भी गवाहों को डराया गया था. इसके अलावा रिपोर्ट में पीड़ितों को गुजरात के बाहर अलग-अलग जगहों पर ले जाकर चंदा इकट्ठा करने की बात कही गई है. SIT की यह रिपोर्ट बताती है कि आरोपी तीस्ता और नेशनल कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा पीड़ितों के खिलाफ भ्रामक बातें कहने का भी आरोप लगाया गया था. इतना ही नहीं पीड़ितों को गुजरात दंगों के मामले को गुजरात से बाहरी कोर्ट में ले जाने के लिए भी उकसाया गया था.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तीस्ता और संजीव भट्ट एक दूसरे के संपर्क में थे. इतना ही नहीं संजीव भट्ट कुछ नामी पत्रकारों और कुछ एनजीओ समेत गुजरात विधानसभा में नेता विपक्ष से भी ईमेल के जरिये संपर्क में थे. ये सभी संपर्क एमिकस क्यूरी, कोर्ट और बाकी लोगों पर प्रभाव खड़ा करने के लिए साधे गए थे. एफिडेविट नहीं करने वाले एक गवाह का पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट ने अपहरण तक करवा लिया था और उसके जबरन फर्जी एफिडेविट बनवाया था. इन सभी बड़ी साजिशों के पीछे केवल एक ही मंशा थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक पारी खत्म की जाए और उस समय उनकी साख को नुकसान पहुंचाया जाए.
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