चेन्नई: तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के बीच कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। RTI से मिले एक जवाब में खुलासा हुआ कि 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने एक समझौते के तहत कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को दे दिया था। इस जवाब से पता चला है […]
चेन्नई: तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के बीच कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। RTI से मिले एक जवाब में खुलासा हुआ कि 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने एक समझौते के तहत कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को दे दिया था। इस जवाब से पता चला है कि कैसे इंदिरा गांधी की सरकार, एक द्वीप की लड़ाई एक छोटे से देश से हार गया था। दूसरी ओर श्रीलंका ने इस द्वीप पर नियंत्रण पाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी।
के. अन्नामलाई, जो तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष है, उनकी तरफ से इस द्वीप को लेकर एक RTI आवेदन दिया गया था। इसके जवाब से पता चलता है कि कच्चातिवू द्वीप तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने श्रीलंका को दे दिया था। जवाब में मिले दस्तावेजों के मुताबिक कच्चातिवू द्वीप भारत के तट से करीब 20 किमी. की दूरी पर मौजूद है। दस्तावेजों के मुताबिक, भारत की आजादी के बाद से श्रीलंका लगातार इस द्वीप पर अपना दावा ठोक रहा था। हालांकि, भारतीय सरकार ने कई सालो तक इसका विरोध किया था। आजादी के बाद भी भारत की नौसेना श्रीलंका की इजाजत के बिना द्वीप पर अभ्यास नहीं कर सकता था, वहीं दूसरी तरफ श्रीलंका की वायुसेना इस द्वीप पर अपना अभ्यास कर रही थी।
1961 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में कहा था कि इस द्वीप का मुद्दा अप्रासंगिक है। उन्होंने कहा था कि मैं इस द्वीप पर दावे को छोड़ने में हिचकूंगा नहीं। मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपने दावों को छोड़ने में जरा सी भी हिचकिचाहट नहीं होगी।
1973 में कोलंबो में हुई विदेश सचिव स्तर की बातचीत के एक साल बाद, भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का फैसला किया। इस बात की जानकारी जून 1974 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को दी गई।
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