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Tamil Nadu Temples Gold: तमिलनाडु सरकार के मंदिरों का 2000 किलो सोना पिघलाने के फैसले पर HC ने लगाई रोक, कहा- ऐसा फैसला लेने का अधिकार सिर्फ ट्रस्टी को

नई दिल्ली. Tamil Nadu Temples Gold मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के 2000 किलो सोना पिघलाने के फैसले पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंदिरों के ट्रस्टी ही ऐसा फैसला ले सकते हैं. बता दें कि राज्य की एम के स्टालिन सरकार ने लगभग 2138 किलोग्राम सोना पिघलाने की […]

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Tamil Nadu Temples Gold
  • October 31, 2021 5:02 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

नई दिल्ली. Tamil Nadu Temples Gold मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के 2000 किलो सोना पिघलाने के फैसले पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मंदिरों के ट्रस्टी ही ऐसा फैसला ले सकते हैं. बता दें कि राज्य की एम के स्टालिन सरकार ने लगभग 2138 किलोग्राम सोना पिघलाने की प्रक्रिया शुरु कर दी थी. राज्य सरकार के फैसले पर कुछ याचिकर्ताओं ने कोर्ट में अपील की थी और जनता के द्वारा चढ़ाए गए सोने को राज्य सरकार के इस तरीके से पिघलाने की मंशा पर सवाल उठाए थे.

याचिकाकर्ताओं ने किया सरकार के आदेश का विरोध

चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस पी डी अदिकेसवालु की बेंच के सामने राज्य सरकार ने दलील दी थी कि उसे मंदिर में जमा सोने को गला कर गोल्ड बार में बदलने का अधिकार है. इस सोने के पिघलने से 24 कैरेट बार को बैंक में रखा जाएगा और उस पैसे को मंदिर के विकास के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। बता दें यह प्रक्रिया पिछले 50 साल से चल रही है. याचिकाकर्ताओं ने सरकार के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि यह फैसला हिंदू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स एक्ट, ऐंसिएंट मॉन्यूमेंट्स एक्ट, जेवेल रूल्स आदि का उल्लंघन है, बल्कि हाई कोर्ट के आदेश के भी खिलाफ है.

इस साल 7 जून को हाई कोर्ट ने मंदिरो की संपत्ति के मूल्यांकन और उसका रिकॉर्ड दर्ज किए जाने का आदेश दिया था. कोर्ट ने बताया की यह पिछले 60 सालों से नहीं किया जा रहा था. इस फैसले पर राज्य सरकार ने ऑडिट की बजाए मंदिरों के सोने को पिघलाने की घोषणा की और मंदिरों के सोने का वजन 2138 बताया.

सरकार का फैसला संदेहजनक: याचिकाकर्ता

याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार के फैसले को गलत बताया और कोर्ट को कहा की राज्य में पिछले 10 साल से मंदिर के ट्रस्टी नहीं बनाए है. ट्रस्टी ही मंदिर के सोने को पिघलाने का फैसला करते है, जिसपर राज्य सरकार सहमति देती है. कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने कदम पीछे ले लिए हैं और कोर्ट को लिखित आश्वासन दिया है कि पहले मन्दिरों में ट्रस्टी नियुक्त किए जाएंगे. और इसके बाद ही उनकी सहमति से ही आगे कोई निर्णय होगा.

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