नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव होने से पहले एक बार फिर सड़कों पर किसान उतरे हैं. वहीं दो संगठन-संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने आज ‘दिल्ली चलो मार्च’ बुलाया था और इसी को लेकर दिल्ली की सभी सीमाएं सील हैं. वहीं दिल्ली आने वाली सभी सीमाओं पर जांच की जा रही है. इसके लिए […]
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव होने से पहले एक बार फिर सड़कों पर किसान उतरे हैं. वहीं दो संगठन-संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने आज ‘दिल्ली चलो मार्च’ बुलाया था और इसी को लेकर दिल्ली की सभी सीमाएं सील हैं. वहीं दिल्ली आने वाली सभी सीमाओं पर जांच की जा रही है. इसके लिए बैरिकेडिंग भी कर दी गई है. इतना ही नहीं ड्रोन से निगरानी भी की जा रही है. इसी बीच शंभू बॉर्डर से लेकर जींद बॉर्डर तक पुलिस और किसान में झड़प जारी है. प्रदर्शनकारी किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल किया जा रहा है।
किसानों का मकसद यह है कि संसद भवन का घेराव करके सरकार पर अपनी मांगे पूरा करना, लेकिन पुलिस ने दिल्ली आने वाली सभी सीमाओं को पूरी तरह से सील कर दिया है. प्रदर्शन करने वाले किसानों की सबसे बड़ी मांगों में से एक न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी की है. वहीं किसान इसको लेकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं. वहीं ऑल इंडिया किसान सभा का कहना है कि सरकार ने स्वामीनाथन को भारत रत्न तो दे दिया है, लेकिन उनकी सिफारिशें नहीं सुनी है।
किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने उनसे एमएसपी की गारंटी को लेकर कानून लाने का वादा किया था, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हो सका. वहीं स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी फसल की लागत का डेढ़ गुना कीमत के लिए सिफारिश की थी. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को आए 18 साल बीत चुके है, लेकिन एमएसपी पर सिफारिशों को लागू अभी तक नहीं किया गया है और किसानों के बार-बार आंदोलन करने का यही कारण है।
वहीं इन किसानों के गुस्से का खामियाजा सत्ताधारी पार्टी को भुगतना पड़ा है. इंदिरा गांधी से लेकर अभी तक की सरकारें किसानों के गुस्से का खामियाजा भुगत रही हैं. वाजपेयी सरकार के जाने के बाद जब यूपीए की सरकार बनी तो नवंबर 2004 में एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी. इसे नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स नाम रखा गया था. वहीं स्वामीनाथन आयोग पर किसानों से जुड़ी समस्याओं का हल जानना था. दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच स्वामीनाथन आयोग ने छह रिपोर्ट बनाई थी. इसमें स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कई सारी सिफारिशें की थीं. जिसमें एमएसपी को लेकर भी सिफारिश की गई थी।
स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी फसल की लागत का 50% अधिक देने के लिए सिफारिश की थी. वहीं फसल में लगने वाली लागत को तीन हिस्सों- A2, A2+FL और C2 में डिवाइड किया गया था. A2 में फसल की पैदावार करने के खर्च शामिल होते हैं. इसमें मजदूरी, बीज, खाद, केमिकल, ईंधन और सिंचाई लगने वाली लागत भी शामिल है. A2+FL में फसल की पैदावार करने के कुल लागत के अलावा परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत शामिल है. जबकि C2 में पैदावार में लगने वाली नकदी, गैर-नकदी, जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और खेती से जुड़ी दूसरी चीजों पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल है. वहीं स्वामीनाथन आयोग ने C2 की लागत में 50 फीसदी और जोड़कर फसल पर एमएसपी देने की सिफारिश की थी।
Farmer’s Protest: किसानों के दिल्ली कूच से पहले टेंशन में सरकार, मोबाइल इंटरनेट बंद