Swami Vivekananda Jayanti 2022 : 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भारत की अमिट छाप को दुनिया में पहुंचाने वाले युग पुरूष स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ था.
विवेकानन्द ने बहुत कम उम्र में आध्यात्म को आत्मसात किया. पाश्चिमी देशों में भारतीय योग-वेदांत, संस्कृति, सभ्यता, को अवगत कराने का श्रेय स्वामी विवेकानन्द Swami Vivekananda जी को ही जाता है.
स्वामी विवेकान्नद जी ने 19 वीं शताब्दी के अंत में विश्व मंच (अमेरिका की धर्म संसद) में हिन्दू धर्म को एक मजबूत पहचान दिलाई. इनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था. लेकिन इन्हें नरेन के नाम से पुकारा जाता था.
विवेकानन्द Swami Vivekananda जी के पिता कलकत्ता हाईकोर्ट में वकील थे. दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फारसी भाषा के जाने माने विद्वान थे. स्वामी जी करीब 25 साल की उम्र में सन्यासी बन गए थे.
उनके पारिवारिक माहौल ने उनके ज्ञानार्जन में काफी मदद की. वे बचपन में बड़े चंचल स्वभाव के थे. लेकिन जैसे –जैसे उम्र बढ़ती गई उनमें ज्ञान औऱ व्यावहारिकता की समझ विकसित होती चली गई.
नतीजा ये रहा कि स्वामी जी ने बुद्धिमानी और हाजिरजवाबी का लोहा दुनियाभर में मनवाया. और इस घटना से लोग अचम्भित होकर उनके व्यक्तित्व की ओर आकर्षित होते चले गए.
स्वामी जी एक सन्यासी की तरह भगवा वस्त्र पहनते थे. और उसी वेश में दुनिया भर की यात्रा करते थे. एक बार स्वामी जी विदेश यात्रा पर थे. तो उनकी वेशभूषा ने लोगों का ध्यान खींचा.
इतना ही नहीं एक विदेशी ने तो उनकी पगड़ी भी खींच ली. तो स्वामी जी ने अंग्रेजी में पगड़ी खींचने का कारण पूंछा.
पहले तो वह व्यक्ति स्वामी Swami Vivekananda जी की अंग्रेजी सुनकर हैरान रह गया उसके बाद उनसे पूंछा आप अंग्रेजी बोल लेते हैं. तो स्वामी जी ने कहा हां मैं पढ़ा लिखा हूं सज्जन हूं.
स्वामी जी के इस जवाब पर विदेशी ने कहा कि आपकी वेशभूषा से तो नहीं लगता. तो स्वामी जी ने करारा जवाब दिया. कि आपके देश में आपको एक दर्जी सज्जन बनाता है. जबकि हमारे देश में मेरा किरदार.
एक बार स्वामी Swami Vivekananda जी अलवर के महाराज मंगल सिंह के दरबार में गए. अलवर के राजा ने उनका मजाक उड़ाते हुए सवाल किया. स्वामी जी मैने सुना है आप एक विद्वान व्यक्ति हैं तो आप आसानी से एक आरामदायक जिंदगी जी सकते हैं. ये भिखारी की तरह क्यों रहते हैं. इस पर स्वामी जी ने जवाब दिया कि आप ये बताइये फिर आप विदेशी लोगों की संगति में क्यों निकल जाते हैं.
वो भी अपने शाही कर्तव्यों की उपेक्षा करते हुए. स्वामी जी का जवाब सुन लोग अचम्भित हो गए. राजा ने फिर आगे सवाल किया. मुझे यह अच्छा लगता है और मैं इसका आनन्द लेता हूं. उस समय स्वामी जी ने बात को यहीं समाप्त कर दिया.
आगे जब स्वामी Swami Vivekananda जी महाराज के दरबार में पहुंचे. वहा उन्होने शिकार किए गए कई जानवरों के सामान और चित्र देखे. तब राजा से कहा एक जानवर भी दूसरे जानवर को बेवजह नहीं मारता. फिर आप इन जानवरों को मनोरंज के लिये क्यों मारते हैं. मुझे यह बेमतलब लगता है.
तब राजा मंगल सिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया आप जिन मूर्तियों की पूजा करते हैं, वो मिट्टी, पत्थर या धातु के टुकड़ों की बनी होती हैं. मुझे तो मूर्ति पूजा भी अर्थहीन लगती है. इस पर स्वामी जी ने राजा को समझाते हुए कहा. हिन्दू केवल भगवान की पूजा करते हैं. मूर्ति को वे केवल प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं.
आगे जब स्वामी जी ने महल में राजा के पिता की तस्वीर टंगी देखी. तो एक दरबान से उसपर थूकने के लिये कहा. यह नजारा देखकर राजा को बहुत गुस्सा आया. राजा को नाराज देखकर स्वामी जी मुस्कराए और जवाब दिया.
ये तुम्हारे पिता कहां हैं. ये तो बस एक पेंटिंग है. कागज का टुकड़ा है. ये सुनकर राजा दंग रह गया. क्योंकि मूर्ति पूजा के सवाल पर राजा को तार्किक जवाब था. स्वामी जी ने राजा को समझाते हुए कहा देखिए राजन,
ये भले ही एक तस्वीर है. लेकिन जब आप इसे देखते हैं. तो ये आपको अपने पिता याद दिलाती है. वैसे ये मूर्तियां भी हैं. जो जगतपिता की याद दिलाती हैं. स्वामी जी के जवाब से राजा को अपने किये कराए पर पश्चाताप हुआ. उसने स्वामी जी से अपनी गलती के लिये माफी मांगी.
पीटर नाम का एक अंग्रेज प्रोफेसर स्वामी जी से नफरत करता था. उस समय स्वामी Swami Vivekananda जी तपस्वी नहीं हुए थे. एक दिन स्वामी जी अपना खाना लेकर प्रोफेसर के पास बैठ गए. तब प्रोफेसर ने कहा कि एक सूअर और पक्षी साथ खाने के लिये नहीं बैठते हैं.
ऐसा सुनकर विवेकानन्द जी ने जवाब दिया आप चिंता न करें प्रोफेसर मैं उड़ जाऊंगा. ऐसा कहकर वे बगल की दूसरी मेज पर बैठ गए. पीटर बेइज्जती से लाल हो गया उसने आगे स्वामी जी से बदला लेने का फैसला लिया.
प्रोफेसर अपमान के बदले की आग में झुलस रहा था. अगले दिन उसने क्लास में स्वामी जी से एक प्रश्न किया. श्रीदत्त अगर तुम्हें जाते वक्त सड़क पर दो पैकेट मिल जाएं एक ज्ञान का दूसरा धन का तो तुम कौन सा लोगे.
स्वामी जी ने तपाक से जवाब दिया. पैसे वाला.
पीटर ने मुस्कुराते हुए कहा मैं अगर तुम्हारी जगह होता तो ज्ञान वाला लेता इसपर स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया हर कोई वही लेता जो जिसके पास नहीं होता.
इस बात से प्रोफेस और लाल हो गया. उसने स्वामी जी से फिर बदला लेने की सोची. इस बार परीक्षा के दौरान जब उसने स्वामी जी को पेपर सौंपा तो इडिएट लिखकर दे दिया.
पेपर प्राप्त करने के बाद स्वामी जी प्रोफेसर के पास गए और मुस्कुराते हुए बोले मिस्टर पीटर आपने इस पेपर पर अपने सिग्नेचर तो कर दिए लेकिन मुझे ग्रेड नहीं दिया.
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