नई दिल्ली. आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो बन चुके अरविंद केजरीवाल राजनीति में ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटने के लिए मशहूर रहे हैं. वो जिसे उंगली दिखा दें, वो भ्रष्ट. जिसकी पीठ पर हाथ रख दें, वो ईमानदार. लेकिन राज्यसभा चुनाव में सुशील गुप्ता और नारायण दास गुप्ता को आप का उम्मीदवार बनाकर उन्होंने विरोधियों को मौका दे दिया है. इस फैसले पर केजरीवाल को भ्रष्ट होने से लेकर राजनीतिक नासमझी तक के सर्टिफिकेट थोक में मिल रहे हैं.
लोकतांत्रिक समाज में राजनीति का एक उसूल है कि इसमें विरोधियों को भी पूरा स्पेस दिया जाता है. चाहे वो पार्टी के अंदर हों या बाहर. विरोधाभासी सोच के लोगों की बदौलत ही कोई पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से फल-फूल सकती है. फिर सोच में विरोध होने के चलते कुमार विश्वास को राज्यसभा सीट से वंचित करने का मतलब क्या है? आज आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास पर साज़िश रचने के आरोप लगा रहे हैं और खुद सवालों में घिरे हैं कि अगर ऐसा ही था तो कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभारी बनाने की ज़रूरत क्या थी? उनकी साज़िशों का पर्दाफाश करने की ज़रूरत तभी क्यों नहीं महसूस हुई, जब अमानतुल्लाह खान के जरिए ये आरोप लगवाया गया था? उस वक्त अमानतुल्लाह खान को ही सस्पेंड क्यों किया गया, कुमार विश्वास को दंड की बजाय केजरीवाल ने अपना भाई बताकर पुरस्कार क्यों दिया?
सुशील गुप्ता और नारायण दास गुप्ता को राज्यसभा में भेजे जाने पर सवाल इसलिए भी ज्यादा उठ रहे हैं, क्योंकि दोनों का ही आम आदमी पार्टी की नीतियों और केजरीवाल के प्रति निष्ठा का रिकॉर्ड ठीक नहीं है. इनमें से एक सुशील गुप्ता घोषित कांग्रेसी रहे हैं तो दूसरे नारायण दास गुप्ता के बारे में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने आरोप लगाया है कि वो वित्त मंत्री अरुण जेटली के करीबी हैं.
आम आदमी पार्टी ने एन डी गुप्ता को इस दलील के साथ राज्यसभा के लिए चुना है कि एन डी गुप्ता चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं जो राज्यसभा में जीएसटी की खामियों को मजबूती से उठाएंगे. अजय माकन का आरोप है कि पिछले साल 1 जुलाई को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंस्टीट्यूट ऑफ चार्डर्ड एकाउंटैंट्स ऑफ इंडिया के इवेंट में काला धन और कॉरपोरेट पर नोटबंदी का असर बता रहे थे तब एन डी गुप्ता के बेटे सीए नवीन गुप्ता बतौर आईसीएआई उपाध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे.
सुशील गुप्ता और एन डी गुप्ता को उम्मीदवार घोषित करते वक्त केजरीवाल के डिप्टी मनीष सिसोदिया ने बताया था कि देश और समाज के प्रतिष्ठित 18 लोगों ने राज्यसभा की पेशकश ठुकरा दी थी, क्योंकि उन्हें राजनीतिक हमले तेज़ होने की आशंका थी. विकल्प के रूप में पार्टी जिन दो लोगों को लेकर आई, उनमें से नारायण दास गुप्ता (एन डी गुप्ता) के बारे में खुद मनीष सिसोदिया ने बताया कि वो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी, आईआरडीए और सेबी जैसी संस्थाओं से जुड़े रहे हैं. तो क्या एन डी गुप्ता को राजनीतिक हमलों का डर इसीलिए नहीं लगा, क्योंकि सत्ता के गलियारों में उनकी दखल रही है?
केजरीवाल के लिए सत्ता की रेवड़ी बांटने का ये पहला बड़ा मौका था. वो चाहते तो राज्यसभा की बाकी दोनों सीटें भी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं को दे सकते थे. इससे संकेत जाता कि पार्टी कार्यकर्ताओं का सम्मान करना जानती है. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ता, उन्हें पार्टी में अपना भविष्य नज़र आता लेकिन केजरीवाल ये मौका चूक गए. अब ये सवाल लंबे समय तक उनका पीछा करेगा कि राजनीतिक दूरदर्शिता के अभाव और राजनीति नासमझी में वो अपने दम पर पार्टी को कितना आगे ले जा पाएंगे? अगर केजरीवाल की राजनीति खुद तक केंद्रित है तो फिर क्यों कर कोई अपना भविष्य दांव पर लगाएगा और केजरीवाल का झंडा ढोएगा?
जगुआर ने 89 साल पुराने अपने लोगो को बदल दिया है। बता दें 2026 से…
मतदाताओं को रिवॉल्वर दिखाने का वीडियो वायरल हुआ, जिसके बाद पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने…
सेक्स रैकेट का खुलासा करते हुए पुलिस ने एक होटल से 8 युवक और 7…
मंगलवार को यूक्रेन ने रूस पर मिसाइल से हमला किया था. दो साल से जारी…
महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हाईटेक कंट्रोल रूम बनाने का काम…
सलमान खान ने भी मुंबई के बांद्रा पश्चिम स्थित पोलिंग बूथ पर मतदान किया। ग्रे…