नई दिल्ली: आर्टिकल-370 की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज (11 दिसंबर) को ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा. इस मुद्दे पर देश की सबसे बड़ी अदालत में 5 न्यायधीशों के सामने 26 वकीलों के बीच 16 दिनों तक जबरदस्त बहस हुई. इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
आर्टिकल-370 के पक्ष और विपक्ष में क्या बड़े तर्क दिए गए…
याचिकाकर्ता- राष्ट्रपति शासन राज्य में लोकतांत्रिक और संवैधानिक सरकार को बनाने के लिए लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल सरकार संविधान बदलने के लिए नहीं कर सकती है.
सरकार- शासन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए संविधान और कानून के आधार पर ही राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. इस दौरान संसद के दोनों सदनों में आर्टिकल 356 के जरिए प्रस्ताव पास हुए थे.
याचिकाकर्ता- जम्मू-कश्मीर में दिसंबर 2018 से लेकर अक्टूबर 2019 तक राष्ट्रपति शासन लागू था. इस दौरान सारे फैसले राज्यपाल ले रहे थे. राज्य सिर्फ राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं, जो आपातकाली स्थिति में चुनी हुई सरकार का स्थान लेते हैं. केंद्र द्वारा आर्टिकल 370 को लेकर जो फैसले लिए गए उसे जम्मू-कश्मीर की जनता और वहां की चुनी हुई सरकार का समर्थन नहीं प्राप्त था. ऐसे में विधानसभा की बिना सिफारिश के ये कानून नहीं बन सकते हैं.
सरकार- कानून को बनाए जाने के समय राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था. जिस वजह से संसद के पास राज्य के विधानमंडल की शक्तियां थीं. अनुच्छेद 356 (B) के अनुसार संसद ने अपनी कानूनी शक्तियों का इस्तेमाल करके ही आर्टिकल 370 में बदलाव किया है.
याचिकाकर्ता- जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटना आर्टिकल-3 का उल्लंघन है और ऐसा करना संविधान के संघीय ढांचे के विरुद्ध है.
सरकार- आर्टिकल-3 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश दोनों के ही संदर्भ में है. ऐसे में केंद्र एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर सकता है. यह फैसला घाटी वाले क्षेत्र से आंतकवाद और अलगाववाद को खत्म करने के लिए किया गया था. केंद्र ने ऐसा करके वहां पर शांति को बहाल करने और पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिश की है.
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