दाऊदी बोहरा समाज में लड़कियों के खतना प्रथा के खिलाफ 30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा के खिलाफ दाखिल की गई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. इस मामले में हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म के पर किसी महिला का यौन अंग कोई कैसे छू सकता है.

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दाऊदी बोहरा समाज में लड़कियों के खतना प्रथा के खिलाफ 30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

Aanchal Pandey

  • July 23, 2018 5:28 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट आने वाली 30 जुलाई दोपहर 2 बजे दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है. यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है. वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और ये इस ओर रोक का समर्थन करता है.

गौरतलब है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिहाड़ ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.

गौरतलब है कि लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है. क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है. लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई थी. याचिका में कहा गया कि ये तो अमानवीय और असंवेदनशील है. लिहाजा इस पर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाए तब तक कोर्ट गाइड लाइन जारी करे. इस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि कानून तो पहले से ही है. हां, इसमें प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है.

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