SC/ST अत्याचार निवारण (संशोधन) कानून 2018 के खिलाफ आरक्षण संघर्ष समिति ने एक याचिका दायर की है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार है. इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिसके बाद दलितों का गुस्सा भड़क उठा था. इसके बाद नरेंद्र मोदी सरकार को कानून में संशोधन करना पड़ा और पुराना कानून लागू हो गया.
नई दिल्ली: SC/ST अत्याचार निवारण (संशोधन) कानून 2018 के खिलाफ एक और याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है. यह अर्जी आरक्षण संघर्ष समिति ने दायर की है, जिस पर शीर्ष अदालत सुनवाई को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट मुख्य मामले के साथ ही इसकी भी सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट पहले ही दूसरी याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है.
एससी-एसटी संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून के नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी. याचिका में नए कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिए गए फैसले में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा-निर्देश जारी किए थे.
क्या है एससी/एसटी एक्ट: पिछली जातियों के खिलाफ अत्याचार और भेदभाव को रोकने के लिए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था. यह एक्ट पूरे देश में लागू है, सिवाय जम्मू-कश्मीर के. अगर कोई शिकायत इस कानून के प्रावधानों के तहत दर्ज होती है तो उसकी सुनवाई के लिए खास व्यवस्था की गई है, ताकि वे लोग खुलकर अपनी बात कह सकें.
सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून में क्या बदलाव किया था: सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून में बदलाव करते हुए कहा था कि मामले में आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा और न ही शिकायत पर तुरंत मुकदमा दर्ज होगा. कोर्ट ने कहा, शिकायत के बाद डीसीपी रैंक का अफसर शुरुआती जांच करेगा और जांच किसी भी हाल में 7 दिनों से ज्यादा समय तक नहीं होगी. पुलिस अफसर जांच करने के बाद नतीजा निकालेंगे कि क्या वाकई कोई मामला बनता है या झूठा आरोप लगाया गया है. कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की बात स्वीकारते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.