याचिका में कहा गया है चुनाव लड़ने से संबंधित कानून यानि जनप्रतिनिधी कानून की धारा 8 में संशोधन किया जाना, यह धारा उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के लिए है जिसमें यह जोड़ने की मांग है कि गंभीर अपराधों में कोर्ट में आरोप तय हो जाने पर आरोपी को चुनाव लड़ने से रोका जाए. सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था.
नई दिल्ली. दागी नेताओं को चुनावों से बाहर करने की कवायद पर गुरूवार से सुप्रीम सुनवाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगा, जिनमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में कोर्ट में अगर आरोपी पर आरोप तय हो जाए तो ऐसे में आरोपी के दोषी साबित होने तक का इंतजार करने की जरूरत नहीं, बल्कि आरोप तय होते ही ऐसे नेता को चुनाव की उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर कर दिया जाना चाहिए. इस मामले में गंभीर अपराध वह बताए गए हैं जिनमें सजा 5 साल या इससे ज्यादा हो.
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2016 में यह मामला पांच जजों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं दायर हैं. याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसद नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध में कोर्ट आरोप तय कर चुका है.
याचिका में कहा गया है चुनाव लड़ने से संबंधित कानून यानि जनप्रतिनिधी कानून की धारा 8 में संशोधन किया जाना, यह धारा उम्मीदवार को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के लिए है जिसमें यह जोड़ने की मांग है कि गंभीर अपराधों में कोर्ट में आरोप तय हो जाने पर आरोपी को चुनाव लड़ने से रोका जाए. इस संदर्भ में कहा गया है कि चुनाव आयोग भी 1998, 2004 और 2016 में इस मांग की सिफारिश कर चुका है. साथ ही ला कमीशन की 244वीं रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है.
याचिका में ये भी कहा गया है कि कई विशेषज्ञ समितियां जिसमें गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, कृष्णामचारी समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति, जस्टिस जीवनरेड्डी कमीशन, जस्टिस वेंकेटचलैया कमीशन, चुनाव आयोग और विधि आयोग राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी सिफारिशें लागू नहीं कीं.
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