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प्रमोशन में आरक्षण शर्तों के साथ- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज सरकारी नौकरी में प्रमोशन में SC/ST आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. शीर्ष अदालत ने साल 2006 के अपने फैसले को बररकार रखते हुए इसे सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजने से मना कर दिया है.

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Supreme Court
  • September 26, 2018 10:48 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्लीः  सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज सरकारी नौकरी में प्रमोशन में एससी/एसटी आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने फैसले में 2006 के फैसले को बरकरार रखा है. शीर्ष अदालत का कहना है कि इस मामले पर फिर विचार करने की जरूरत नहीं है. वहीं कोर्ट ने सात जजों की संविधान पीठ के पास भेजने से भी मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि 2006 नागराज फैसले में गई शर्त जिसके अनुसार एससी-एसटी समुदाय को आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन का आंकड़ा देना होगा वो गलत है क्योंकि ये शर्त इंद्र साहनी मामले में 9 जजों के बेंच के फैसले के विपरीत है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन के लिए प्रतिनिनिधित्व वाला विषय राज्य सरकारों पर छोड़ देना सही था यानी कि अब ये सरकार तय करेगी. शीर्ष अदालत ने कहा कि आरक्षण किसको मिले और किसे नहीं ये सरकार ही तय करे. साथ ही ये भी कहा कि हर प्रमोशन के समय सरकार को प्रशासनिक पद की छमता का भी ध्यान रखना होगा. 

कोर्ट ने नागराज के फैसले में क्रीमी लेयर को सही ठहराते हुए कहा कि हम उसमें दखल नहीं देंगे. बता दें कि क्रीमी लेयर पर नागराज के फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में आरक्षण देते समय समानता के सिद्धांत को लागू करते हुए क्रीम लेयर, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, 50 फीसदी आरक्षण की सीमा, प्रशासनिक क्षमता का ध्यान में रखना होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी कॉडर में एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए डेटा जरूरी है. सरकार को यह दिखाना होगा कि समुदाय को किसी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है.

एससी-एसटी पर भी क्रीम लेयर का नियम लागू किया जा सकता है ताकि जो लोग इसका लाभ उठाकर पिछड़ेपन से दूर हो चुके हैं ताकि वो पिछड़े लोगों के साथ आरक्षण के दायरे से बाहर हो सकें. लेकिन ये संसद का काम है कि वो एससी-एसटी में क्रीमी लेयर को शामिल करे या हटाए. 

कोर्ट ने एसटी-एसटी वर्ग के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़ें देने की बाध्यता को भी खत्म कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद एससी-एसटी श्रेणी में आने वाले लोगों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ माना जा रहा है! 

आपको बता दें कि साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर दिए अपने फैसले में एससी-एसटी कर्मियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों के सामने कुछ शर्ते रखी थीं. जिसके बाद प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर आज सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है. 

गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले पर 30 अगस्त को सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.  मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अलावा इस पीठ में जस्टिस कूरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थीं. 

 

 

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