दहेज उत्पीड़न मामले में तुरंत गिरफ्तारी होगी या नहीं, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली: दहेज उत्पीड़न केस में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक और नई गाइडलाइंस जारी करने के दो जजों के पुराने फैसले को पटला जाए या नहीं इसपर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच शुक्रवार को फैसला सुनाएगी. पिछले साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए उससे पहले नहीं.

गौरतलब है कि दहेज प्रताड़ना मामले में केस दर्ज होने के बाद सीधे गिरफ्तारी पर रोक से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने 23 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया.

27 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अपने फैसले में क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिती की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना मामले में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी और लीगल सर्विस अथॉरिटी से कहा था कि प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन किया जाए जिसमें इसमें सिविल सोसायटी के लोग भी शामिल हों. उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया है.

अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम तय करेंगे कि क्या दो सदस्य की खंडपीठ के आदेश के बाद ये कानून कमजोर हुआ है?  13 अक्टूबर 2017 को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि हम कानून नहीं बना सकते हैं बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं.

अदालत ने कहा था कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है. अदालत ने मामले में एडवोकेट वी. शेखर को कोर्ट सलाहकार बनाया था।. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम वैवाहिक विवाद से संबंधित तथ्यों को देखने के लिए नहीं हैं बल्कि हमें ये देखना है कि सिस्टम में जो गैप है उसे आदेश के जरिये भरा जाए.

हमें ये देखना है कि क्या गाइडलाइंस जारी कर कानून के गैप को भरा गया है? क्या अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल कर फैसला देना सही था? साथ ही ये भी देखना जरूरी है कि इस आदेश के क्या कानून कमजोर हुआ है? सरकार का कहना था कि पिछले साल का फैसला व्यवहारिक दृष्टिकोण से सही नहीं है. बहरहाल मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला पटलने के मायने?

अगर सुप्रीम कोर्ट पुराने फैसले को पटलते हुए 498 ए में तुरंत गिरफ्तारी को फिर से लागू कर देता है तो जिनके खिलाफ एफआईआर होगी उन्हें सीधा जेल जाना होगा.

पुराने फैसले को बनाए रखने के क्या होंगे मायने?

अगर सुप्रीम कोर्ट 498 ए में जांच के बाद गिरफ्तारी के पुराने फैसले को ही रखता है तो मामला पहले समीति के पास जाएगा. हालांकि पीड़ित के पास ये विकल्प होगा कि वो कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं और राहत पा सकते हैं.

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Aanchal Pandey

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