सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं, पार्टियों को देनी होगी प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दागी नेताओं के चुनावी भविष्य पर बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी नेता को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सिर्फ चार्जशीट ही काफी नहीं है. चार्जशीट के आधार पर नेताओं पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है. संसद इसको लेकर कानून बनाए.

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं, पार्टियों को देनी होगी प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी

Aanchal Pandey

  • September 25, 2018 11:16 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्लीः दागी नेताओं के चुनावी भविष्य पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने आपराधिक मामलों में लिप्त नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जनता को अपने नेताओं के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए. हर नेता को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को देनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि सभी पार्टियां अपने प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेंगी और इस बारे में जनता को भी बताएंगी. संसद को लोकतंत्र के इस गंभीर मुद्दे पर कानून लाना चाहिए.

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय लोकतंत्र में संविधान के भारी मैंडेट के बावजूद राजनीति में अपराधीकरण का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. चुनाव लड़ने वाले हर प्रत्याशी को खुद पर दर्ज आपराधिक केसों के बारे में फॉर्म भरकर बताना होगा और इसे उम्मीदवार बोल्ड लैटर में भरेंगे. इसके साथ ही चुनाव लड़ने वाला शख्स खुद पर लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी पार्टी को भी देगा. पार्टी को इसे अपनी वेबसाइट पर जारी करना होगा. कोर्ट ने कहा कि प्रत्याशी यह डिक्लेरेशन देगा कि उसने खुद पर लंबित सभी मामलों की जानकारी पार्टी को दे दी है. यह चुनाव आयोग की भी जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को इसकी जानकारी दे.

कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा कि राजनीति का अपराधीकरण लोकतंत्र की एक गंभीर समस्या है. पांच साल से ज्यादा सजा वाले मुकदमों में चार्ज फ्रेम होने के साथ ही नेताओं को चुनाव लड़ने के अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर संसद कानून बनाए. यह संसद का कर्तव्य है कि वह ‘पैसे और सत्ता की ताकत’ को राजनीति से दूर रखे. सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों के रिकॉर्ड की सारी जानकारियां वेबसाइट पर डालेंगी. पार्टियों को चुनाव से पहले और नामांकन के बाद तीन बार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर उम्मीदवारों के सभी रिकॉर्ड की जानकारी प्रकाशित करानी होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अयोग्यता में एक ओर अयोग्यता को नहीं जोड़ सकते हैं, जो कानून में नहीं दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसके बावजूद हाल ही के दिनों में राजनीति के अपराधीकरण में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है कि सरकार चलाने के सबसे बेहतर लोगों को चुना जाए. जाहिर तौर पर ऐसे बेहतर लोग का कोई आपराधिक इतिहास नहीं होगा. एक वोटर को अपने उम्मीदवार की सम्पत्ति, उसके आपराधिक अतीत के बारे में जानने का हक़ है, अगर उसे अपराधिक अतीत वाले उम्मीदवार के बारे में जानकारी से वंचित रखा जाता है वैसी सूरत में ये लोकतंत्र के लिए खतरनाक साबित होगा.

मौजूदा वक्त में उम्मीदवार की ओर से दी गई जानकारी का उसके संसदीय क्षेत्र में ठीक तरीके से प्रचार नहीं हो पाता और वोटर को अपने उम्मीदवार के बारे में आपराधिक मुकदमे की जानकारी नहीं मिल पाती.कोर्ट ने कहा कि राजनीति का बढ़ता आपराधिक एक बड़ी निराशाजनक स्थिति है. देश के नागरिक को इसे लेकर खामोश, मूकदर्शक बनाकर नहीं रखा जा सकता. उम्मीदवार का आपराधिक अतीत के बारे में जानकारी देना चुनाव को और ज़्यादा पारदर्शी बनाता है.

क्या है मामला?
दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक से जुड़ा यह मामला काफी पुराना है. मार्च 2016 में केस की सुनवाई के दौरान इसे पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के पास विचार के लिए भेजा गया था. बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम. लिंगदोह, वकील प्रशांत उमराव पटेल और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी इस मामले में लंबित हैं. इन याचिकाओं में कहा गया है कि वर्तमान में देश में 33 प्रतिशत नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामलों में अदालत आरोप तय कर चुकी है. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में आरोपी नेता बरी हो जाते हैं, इसलिए नेताओं की सदस्यता रद्द करने जैसा कोई आदेश न दिया जाए.

क्या की गई थी मांग?
इस केस में दायर की गई याचिकाओं में मांग की गई थी कि अगर किसी शख्स के खिलाफ गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर देता है या फिर उन्हें पांच साल से ज्यादा की सजा सुनाई जाती है तो ऐसे व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. याचिका में यह भी मांग की गई थी कि अगर किसी सांसद या विधायक पर गंभीर अपराध के मामलों में कोर्ट आरोप तय कर देता है तो उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द होनी चाहिए.

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