नई दिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने चाइल्ड प्रोर्नोग्राफ्री से जुड़े एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई के लिए अपनी हामी भर दी है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को अत्याचारपूर्ण करार दे दिया है। […]
नई दिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने चाइल्ड प्रोर्नोग्राफ्री से जुड़े एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई के लिए अपनी हामी भर दी है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को अत्याचारपूर्ण करार दे दिया है।
गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को अपने मोबाइल फोन में अश्लील सामग्री डाउनलोड करने के आरोप में 20 वर्षीय के एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी थी। साथ ही कहा था कि चाइल्ड पोर्न डाउनलोड करना और देखना पॉक्सो और आईटी कानूनों के तहत अपराध नहीं है।
बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट ने 11 जनवरी को हरीश के खिलाफ यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 और सूचना प्रौधिगिकी अधिनियम, 2000 के तहत आपराधिक मामला रद्द कर दिया था। मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि आजकल के बच्चे पोर्न देखने जैसी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। समाज को उन्हें डांटने की बजाए समझाने के लिए परिपक्व होना चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ फरीदाबाद के जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस और नई दिल्ली स्थित बचपन बचाओं आंदोलन संगठन ने सु्प्रीम कोर्ट का रुख किया था। मामले में सोमवार को याचिकाकर्ता संगठनों की ओर पेश हुए वरिष्ठ वकील एचएस कुल्फा ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हाईकोर्ट का फैसला विपरीत है। इस दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला अत्याचारपूर्ण है। एकल न्यायाधीश यह कैसे कह सकता है ? उच्चतम न्यायालय ने इसे लेकर नोटिस भी जारी किया है।