नई दिल्ली. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट 1989 (SC/ST Act 1989) के तहत दर्ज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी किए हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब इस तरह के मामलों में गिरफ्तारी से पहले डीएसपी स्तर के अधिकारी के द्वारा जांच जरूरी होगी. साथ ही गिरफ्तारी से पहले बेल दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की बात को मानते हुए कहा कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.
कोर्ट ने गिरफ्तारी से पहले मिलने वाली जमानत की रुकावट को भी खत्म कर दिया है. ऐसे में दुर्भावना के तहत दर्ज कराए गए मामलों में अब अग्रिम जमानत भी मिल सकेगी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अग्रिम जमानत हर मामले में नहीं लेकिन जिस मामले में जरूरी हो वहां अग्रिम जमानत दी जा सकती है. इसके लिए किसी वरिष्ठ अधिकारी से सहमती लेना अनिवार्य होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है.
बता दें कि महाराष्ट्र से संबंधित एक याचिका पर ये फैसला सुनाया है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और एमिक्स क्यूरी अमरेंद्र शरण की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. तब सुनवाई करने वाली बेंच ने इस मामले में कुछ सवाल उठाए थे. क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय किए जा सकते हैं ताकि बाहरी तरीकों का इस्तेमाल ना हो?
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