नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने देश में राजनीति में अपराध पर रोक लगाने के लिए आपराधिक मामलों में चार्ज फ्रेम होते ही आरोपी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाए जाने से जुड़ी याचिका पर फैसले को सुरक्षित रख लिया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने इलैक्शन कमीशन के साथ साथ केंद्र सरकार की दलीलें सुनने के बाद फैसले को सुरक्षित रखा है. बता दें कि पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन सहित कई संगठनों और याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं पर संविधान पीठ संयुक्त सुनवाई कर रही है.
गौरतलब है कि मामले में याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई है कि किसी भी विधायक या सांसद के खिलाफ जब किसी निचली अदालत में आपराधिक मामले में आरोप तय होता है उसी समय उसकी उम्मीदवारी पर रोक लगा दी जानी चाहिए. फिलहाल नियम यह है कि जब किसी विधायक या सांसद पर आरोप तय हो जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा हो जाती है तो वह सजा खत्म होने के बाद अगले 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता.
मामले पर पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से दलील पेश करते हुए एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि राजनीति में अपराध पर रोक लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का इरादा तो नेक है लेकिन एक सच ये भी है कि लेजिस्लेचर के काम काज में न्यायपालिका हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. इसके जवाब में बेंच ने कहा कि कोर्ट का इरादा विधयिका के काम में हस्तक्षेप करना बिल्कुल नहीं है लेकिन वोटरों को उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड के बारे में मालूम होना भी जरूरी है. उन्हें इसका पूरा अधिकार है.
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