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भीमा कोरेगांव हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, तब तक नजरबंद रहेंगे पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ता

नई दिल्लीः भीमा कोरेगांव हिंसा और पीएम नरेंद्र मोदी की कथित हत्या की साजिश के आरोप में पांच माओवादी शुभचिंतकों को नजरबंद किया गया है. पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी होगी कि नहीं इसको लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. शीर्ष अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता पी. वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फेरेरा, गौतम नवलखा और वेरनॉन गोन्जाल्विस की नजरबंदी एक दिन के लिए बढ़ा दी थी. गुरुवार को केस की सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने पांचों कार्यकर्ताओं के पक्ष में दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसला आने तक सभी कार्यकर्ता अपने-अपने घरों में नजरबंद रहेंगे.

मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा. गुरुवार को सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस केस में एक और नाम का खुलासा किया. मेहता ने कोर्ट को बताया कि प्रकाश चेतन और साईबाबा एक ही आदमी के दो नाम हैं. प्रकाश न सिर्फ हिंदी जानता है बल्कि हिंदी में भाषण भी देता है. तुषार मेहता ने अदालत को यह भी बताया कि प्रकाश की लिखे कई पत्रों में साजिश का जिक्र किया गया है.

इन पत्रों में ERB मीटिंग यानी ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो की मीटिंग का जिक्र किया गया है. इसमें कई कोड हैं जैसे- LIC, इसका मतलब है ‘लो इंटेंसिटी कॉम्बैट.’ तुषार मेहता ने कहा कि आरोपियों के पास बरामद दस्तावेजों में कई गंभीर बातों का जिक्र है, जिन्हें अदालत में बोलकर पढ़ना ठीक नहीं होगा. बहरहाल कार्यकर्ताओं के पक्ष में रोमिला थापर की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने दोनों पक्षों को सोमवार तक अपने लिखित नोट जमा करने को कहा है.

बता दें कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से दाखिल याचिका में महाराष्ट्र सरकार के आरोपों को मनगढ़ंत बताया गया है. रोमिला थापर ने मामले की एसआईटी जांच की मांग की है. उनकी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुवाई में एसआईटी केस की जांच करे. इस मामले में केस दर्ज कराने वाले शख्स की तरफ से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अगर इस तरह से ऐक्टिविस्टों की गुहार को स्वीकार कर लिया जाएगा तो इसका मतलब यह होगा कि हम न तो सीबीआई, न ही एनआईए और न ही पुलिस पर विश्वास रखते हैं. एसआईटी की मांग गैरजरूरी है.

भीमा कोरेगांव हिंसाः 17 सितंबर तक नजरबंद रहेंगे 5 माओवादी शुभचिंतक, सुप्रीम कोर्ट में टली सुनवाई

Aanchal Pandey

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