मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने कहा है कि भीड़ अपने हाथ में कानून नहीं ले सकती. कोर्ट ने केंद्र सरकार से मॉब लिंचिंग के खिलाफ संसद से कानून बनाने को कहा है और तब तक के लिए एक गाइडलाइंस जारी करके राज्य सरकारों को 4 हफ्ते में उसे लागू करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस में एसपी को मॉब लिंचिंग का नोडल अफसर बनाने कहा गया है और वो एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाकर ऐसी गतिविधियों पर नजर रखेगा.
नई दिल्ली. गोरक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला दिया कि कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, भीड़ को भी नहीं. भीड़तंत्र यानी भीड़ हिंसा की कड़ी भर्त्सना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह संविधान के मुताबिक काम करे और संसद के जरिए मॉब लिंचिंग के खिलाफ कड़ा कानून बनाए जिसमें भीड़ द्वारा हत्या के लिए सख्त सजा का प्रावधान हो.
सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कानून बनने तक के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को गाइडलाइंस जारी किया है और इन दिशा-निर्देश पर अमल करने का आदेश दिया है. राज्य सरकारों से कहा गया है कि हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त किया जाए जो मॉब लिंचिंग रोकने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाएगा.
डीएसपी स्तर का अफसर मॉब हिंसा और लिंचिंग को रोकने में सहयोग करेगा. एक स्पेशल टास्क फोर्स होगी जो इंटेलीजेंस सूचना इकठा करेगी कि कौन लोग मॉब लिंचिंग जैसी वारदात की योजना बना रहे हैं या उसे अंजाम देना चाहते हैं या फेक न्यूज और उत्तेजित करने वाली स्पीच दे रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ऐसे इलाकों की पहचान करे जहां ऐसी घटनाएं हुई हों और पांच साल के आंकड़े इकट्ठा करे. कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य आपस मे समन्वय रखें और सरकार मॉब हिंसा के खिलाफ प्रचार प्रसार करे.
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में 153 A या अन्य धाराओं में तुरंत केस हो. राज्य सरकार भीड़ हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना बनाएं और चोट के मुताबिक मुआवजा की राशि तय करें. इसके अलावा ऐसे मामलों का केस फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चले जिसमें पीड़ित के वकील का खर्च राज्य सरकार वहन करेगी.
सुप्रीम कोर्ट अब अगस्त में इस मामले की अगली सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में राज्य सरकारों से कहा है कि वह चार हफ्तों में दिशा-निर्देश लागू करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून व्यवस्था बहाल रखना राज्य और केंद्र सरकार का काम है. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाएं, यह उनकी जिम्मेदारी है.
मॉब लिंचिंग मामले में सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि धर्म, लिंग, जाति के आधार पर मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए. उन्होंने कहा था कि उसे श्रेणियों में बांटा नहीं जा सकता, पीड़ित, पीड़ित होता है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा करने वालों पर बैन लगाने की याचिका पर 6 राज्यों को नोटिस जारी किया गया था. उनसे एेसी घटनाओं पर रिपोर्ट भी पेश करने को कहा गया था. इन राज्यों में राजस्थान, कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश शामिल हैं.
बता दें कि दिल्ली का 16 वर्षीय जुनैद खान, राजस्थान के 55 वर्षीय पहलू खान, केरल के अत्ताप्पादि का रहने वाला 30 वर्षीय आदिवासी मधु, बंगाल के 19 वर्षीय अनवर हुसैन और हाजीफुल शेख यह चंद नाम हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में भीड़नुमा हत्यारों (मॉब लिंचिंग) के शिकार हुए. देश में 2010 से लेकर 2017 के बीच मॉब लिंचिंग की 63 घटनाएं हुई, जिसमें 28 लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. आपको जानकर हैरत होगी कि ऐसी घटनाओं में से 52 फीसदी अफवाहों पर आधारित थीं.