Supreme Court On Daughter Right: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पिता की संपत्ति पर बेटियों का बराबर का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू लॉ में संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित. पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो. ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है.
नई दिल्ली: भारतीय समाज में दसियों से एक परंपरा चली आ रही है कि शादी के बाद पिता की संपत्ति पर बेटी का अधिकार नहीं होता. इसके पीछे समाज ये दलील देता है कि बेटियां तो पराई होती है, उसको शादी के घर किसी और का घर बसाना होता है. जहां वो शादी करके जाती है उसके घर की संपत्ति पर उसका अधिकार होता है लेकिन इस दलील पर लड़कियों के मौलिक अधिकारों का हनन होता देख सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पिता की संपत्ति पर बेटियों का बराबर का अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि हिंदू लॉ में संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित. पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो. ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है.
साल 2005 से पहले तक ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों को अधिकार होता था लेकिन, संशोधन के बाद पिता ऐसी संपत्तियों का बंटवारा मनमर्जी से नहीं कर सकता यानी, वह बेटी को हिस्सा देने से इनकार नहीं कर सकता. कानून बेटी के जन्म लेते ही, उसका पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता है लेकिन स्वअर्जित यानी जो पिता ने जो संपत्ति खुद की कमाई से बनाई हो उसमें सिर्फ बेटियों का दावा कमजोर पड़ जाता है. उसमें अगर पिता चाहे तो दे सकता है अगर न चाहे तो नहीं देना होगा. आइये समझते हैं कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इसके हक में क्या फैसला दिया।
कोर्ट ने इस मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि बेटियां हमेशा बेटियां रहती हैं. बेटे तो बस विवाह तक ही बेटे रहते हैं. यानी 2005 में संशोधन किए जाने से पहले भी किसी पिता की मृत्यु हो गई हो तब भी बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटे या बेटों के बराबर ही हिस्सा मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने हाल में दिए फैसले में कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक देने की जो व्यवस्था की गई है वह उन महिलाओं पर भी लागू होता है, जिनका जन्म 2005 से पहले हुआ है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून इस बात की गारंटी देता है कि बेटियां जन्म से ही साझीदार होंगी. बेटियों के तमाम अधिकार और दायित्व होंगे जो बेटे को जन्म से होते हैं. पैतृक संपत्ति में बेटी को हिस्सा देने से इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता कि उसका जन्म 2005 में बने कानून से पहले हुआ है.
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