कोलकाता: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राज्यपाल आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला की याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया है. वहीं भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले में भारत संघ को पक्षकार बनाने की भी अनुमति दी है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह संरक्षण के दायरे से संबंधित है जो अन्य बातों के साथ-साथ अनुच्छेद 361(2) के तहत राज्यपाल को प्रदान किया जाता है.
प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी. वहीं केंद्र को पक्षकार बनाने की छूट देते हुए पीठ ने कहा कि याचिका खंड (2) की व्याख्या के संबंध में मुद्दे को उठाती है, जो विशेष रूप से आपराधिक कार्यवाही को कानून के शासकीय प्रावधानों के संदर्भ में शुरू किया गया माना जाएगा.
आपको बता दें कि महिला ने मई में शिकायत दर्ज कराई थी कि आनंद बोस ने उसे नौकरी देने के बहाने 24 अप्रैल और 2 मई को बुलाया और राजभवन में उसका यौन उत्पीड़न किया. बाद में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बंगाल के राज्यपाल के विशेष कर्तव्य अधिकारी (ओएसडी-द्वितीय) के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट में कार्यवाही पर रोक लगा दी. वहीं महिला का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि जांच जारी रहनी चाहिए.
इसके बाद उन्होंने इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अपनी याचिका में महिला ने कहा कि वह राज्यपाल को “संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत प्रदत्त व्यापक छूट के कारण” उपचार से वंचित रह गई है और अदालत से आग्रह किया कि “अनुच्छेद 361 के तहत दी गई छूट का प्रयोग उस सीमा तक दिशा-निर्देश और योग्यता तय करने के लिए किया जाए, उन्होंने पुलिस महानिदेशक के माध्यम से पश्चिम बंगाल सरकार को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने की भी मांग की.
वहीं याचिकाकर्ता ने राज्यपाल पर उसकी पहचान उजागर करने का आरोप लगाया और सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह राज्य सरकार को इसके कारण उसे और उसके परिवार को हुई “प्रतिष्ठा और गरिमा की हानि” के लिए मुआवजा देने का निर्देश दे. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 361 के तहत छूट देने के पीछे का उद्देश्य राज्य के प्रमुख को उनके कार्यकाल के दौरान किए गए किसी भी अपराध में शामिल होने के दुर्भावनापूर्ण प्रचार के किसी भी संभावित जोखिम से बचाना था.
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