नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 को खत्म कर दिया है यानि समलैंगिकों के बीच संबंध अब गैरकानूनी नहीं होंगे. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकों को भी आम लोगों की तरह जीने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर इस साल 10 जुलाई को सुनवाई शुरु की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. लेकिन अब ये फैसला आने के बाद LGBT समुदाय के बीच खुशी की लहर हैं.
भारत में इस समय समलैंगिक संबंधों कानून की हरी झंडी मिल चुकी है. वहीं पिछले कुछ सालों में विश्व के 26 देशों में समलैंगिकता तको कानूनी रूप से सही करार दिया गया है. सबसे पहले साल 2000 के दिसंबर में नीदरलैंड में समलैंगिक शादी को कानूनी रूप से सही मान लिया गया. अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में ही इसे कानूनी वैधता दे दी थी. साल 2001 में अमेरिका में 57 फीसदी लोग इसके खिलाफ थे लेकिन 2017 में 62 फीसदी अमेरिकी लोगों ने इसका पक्ष लिया. बता दें कि साल 2017 में आस्ट्रेलियाई संसद में मामले को लेकर वोटिंग हुई जहां संसद के 150 सदस्यों में से केवल 4 इसके खिलाफ थे.
समलैंगिकता को कानूनी वैधता देने वाले सभी 26 देशों की बात करें तो माल्टा, जर्मनी, कोलंबिया, फिनलैंड, आयरलैंड, ग्रीन लैंड, लग्जमबर्ग, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, ब्राजील, फ्रांस, उरुग्वे, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, नॉर्वे, साउथ अफ्रीका, स्वीडन, स्पेन, बेल्जियम, कनाडा में समलैंगिक शादियों को मान्यता दी जा चुकी है.
धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई, समलैंगिकता पर हुई बहस से जुड़ी 10 बड़ी बातें
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