नई दिल्ली. विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों में फ़ास्टट्रैक कोर्ट बनाने को लेकर में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर किया. केंद्र सरकार ने कहा कि 11 राज्यों में 12 फ़ास्टट्रैक कोर्ट का गठन हो चुका है. दिल्ली, आंध्रा, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, वेस्ट बंगाल और मध्यप्रदेश में फ़ास्टट्रैक कोर्ट का गठन कर दिया गया है, जो केवल विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों की सुनवाई करेंगे. कर्नाटक, इलाहाबाद,मध्यप्रदेश, पटना और दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि उन्हें और कोर्ट की जरूरत नहीं है. जबकि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि उन्हें एक और कोर्ट की जरूरत है. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने लिए 7.80 करोड़ का फंड राज्यों को दिया जा रहा है. विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों में फ़ास्टट्रैक कोर्ट बनाने का मामला.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आप नवंबर के आदेश को पढ़िए हमनें आपसे क्या मांगा था? 1 नवंबर 2017 से अभी तक वो जानकारी नहीं आई जो हमनें मांगी थी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि जो हमें दिया गया है वो कागज का एक टुकड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि आखिर 10 हाई कोर्ट ने जवाब क्यों दिया? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा 12 मार्च का हलफ़नामा क्या कहता है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार पूरी तरह से तैयार नहीं है.
5 सितंबर को अगली सुनवाई होनी है. दरसअल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि कितने विधायकों और सांसदों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले लंबित है और उन मामलों की स्थिति क्या है? फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन का क्या हुआ? लेकिन केंद्र सरकार ने कोर्ट में केवल कितने फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की जानकारी दी.
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