Supreme Court Ayodhya Title Suit: अयोध्या विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा कि नहीं सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला, जानिए अब तक का घटनाक्रम

Supreme Court Ayodhya Title Suit: भारत के सबसे बड़े विवादों में से एक अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को यानी आज अहम सुनवाई होने वाली है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट अयोध्या विवाद के निपटारे में मध्यस्था की मदद ली जाए या नहीं इस मामले पर सुनवाई करेगी. अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद शुरू हुए इस विवाद के निपटारे के लिए अब तक कई बार आपसी सहमति की पहल हो चुकी है. लेकिन विवाद में शामिल सभी पक्ष कभी भी एकमत नहीं हुए. शुक्रवार को होने वाली सर्वोच्च न्यायालय की अहम सुनवाई से पहले जानिए रामजन्मभूमि विवाद में कब-कब आपसी सहमति से समाधान पाने की कोशिश की गई और उसका नतीजा क्या रहा?

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Supreme Court Ayodhya Title Suit: अयोध्या विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा कि नहीं सुप्रीम कोर्ट आज सुनाएगा फैसला, जानिए अब तक का घटनाक्रम

Aanchal Pandey

  • March 7, 2019 6:48 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. Supreme Court Ayodhya Title Suit: दशकों पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि- बाबरी मस्ज़िद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ शुक्रवार को यानी आज ये तय करेगी कि इस इस विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नही. बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े ने कहा था कि ये मामला महज जमीनी विवाद नही है बल्कि मामला संवेदना और विश्वास से जुड़ा हुआ है. इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले. ऐसे में आज जब सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक बेंच सुनवाई करेगी तो पूरे देश की निगाहें इस पर टिकी होगी.
वहीं मामले की सुनवाई कर रहे दूसरे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा था कि यह केवल पार्टियों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि दो समुदायों को लेकर विवाद है. हम मध्यस्थता के माध्यम से लाखों लोगों को कैसे बांधेंगे. यह इतना आसान नहीं होगा. शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से संकल्प की वांछनीयता एक आदर्श स्थिति है. लेकिन असल सवाल ये है कि ये कैसे किया जा सकता है?एक तरह जहाँ मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा ने मामले की सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के जरिये बातचीत के लिए हामी भरी तो वही रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा ने मध्यस्थता से इनकार कर दिया था.

संविधान पीठ ने कहा था कि अगर इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा तो इसके लिए मध्यस्थकारों की नियुक्त किया जाएगा. लिहाजा इसके लिए सभी पक्षकारों को नाम सुझाने के लिए कहा था. निर्मोही अखाड़ा ने मध्यस्थकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कूरियन जोसफ, जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस जीएस सिंघवी के नाम सुझाए हैं. उल्लेखनीय है कि किसी भी जमीन विवाद को सुलझाने के लिए भारतीय दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 89 है. सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अयोध्या विवाद पर होने वाली अमह सुनवाई भी इसी धारा के तहत मध्यस्था के लिए विचार-विमर्श करेगी.

क्या है दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 89-

दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत कोर्ट ज़मीनी विवाद को अदालत के बाहर आपसी सहमति से सुलझाने को कह सकता है. कानून के जानकारों के अनुसार जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए सभी पक्षों की सहमति जरूरी है, अगर कोई पक्ष इस समझौते से तैयार नही होता तो अदालत लंबित याचिका पर सुनवाई करेगा।

मध्यस्था के जरिए अयोध्या विवाद सुलझाने पर विभिन्न पक्षों के मत-

1. निर्मोही अखाड़ा- निर्मोही अखाड़ा एक मात्र ऐसा हिंदू पक्ष है जो इस मामले को सुलझाने के लिए बातचीत करने को तैयार है। निर्मोही अखाड़ा के वक़ील का कहना है कि वो बातचीत के लिए तैयार है।
2. मुस्लिम पक्ष- 6 मार्च को मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि वो बातचीत के लिए तैयार है. लेकिन बातचीत की रिकॉर्डिंग हो और गोपनीय हो.
3. रामलला विराजमान- रामलला विराजमान के वक़ील सी एस वैधनाथन ने कोर्ट से बाहर इस मामले की सुलझाने के लिए तैयार नही है. 6 मार्च सुनवाई के दौरान रामलला विराजमान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वक़ील सी एस वैधनाथन ने कहा था कि इस मसले को अदालत के बाहर आपसी सहमति से सुलझाने की कई बार कोशिश की गई लेकिन सहमति नही बन पाई. ऐसे में कोर्ट इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू करे.
4.अखिल भारत हिन्दू महासभा- अखिल भारत हिन्दू महासभा के वकील हरि शंकर जैन के कहा कि इस मसले का बातचीत से हल नही निकल सकता क्योंकि इससे पहले भी कई बार बातचीत से इस विवाद को हल करने की कोशिश की गई है।


आपसी सहमति के जरिए अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद को सुलझाने के प्रयास-

अयोध्या में बाबरी मस्ज़िद विध्वंश विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने के कई प्रयास पूर्व में हो चुके है. यहां एक नजर उन प्रयासों पर.
साल 1993-94- अखिल भारत हिन्दू महासभा के वकील हरि शंकर जैन मुताबिक़ इस मसले को अदालत के बाहर सुलझाने के कई बार प्रयास किये गए. 1994 में केंद्र सरकार ने इस मामले में पहल करते हुए सभी पक्षों को आपसी सहमति से विवाद को सुलझाने को कहा था. हरि शंकर जैन के मुताबिक उस समय बातचीत के कई दौर चले लेकिन सहमति नही बन पाई थी.
लखनऊ हाई कोर्ट- इस विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास किया लखनऊ हाई कोर्ट भी कर चुका है. हरि शंकर जैन के मुताबिक हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को बुलाकर इस मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन वहाँ भी सहमति नही बन पाई.
2010 रमेश चंद्र त्रिपाठी- साल 2010 में रमेश चंद्र त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की मांग की. इसी बीच रमेश चंद्र त्रिपाठी ने 2010 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी. रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की मांग की. लेकिन उस समय भी आपसी सहमति से मामले का निपटारा नही हो पाया।


मार्च 2017-
साल 2017 के मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को आपसी सहमति से सुलझाने की पहल की थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खेहर ने कहा था कि ये मामला धर्म और आस्था से जुड़ा है और ये बेहतर होगा कि इसको दोनों पक्ष आपसी बातचीत से सुलझाएं. जस्टिस खेहर ने कहा था. मुद्दा कोर्ट के बाहर हल किया जाए तो बेहतर होगा। अगर ऐसा कोई हल ढूंढने में वे नाकाम रहे तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा. जस्टिस खेहर ने ये तब कहा जब बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी अर्जी पर जल्द सुनवाई की मांग की थी. हालांकि बाद में कोर्ट को ये बताया गया कि स्वामी इस मामले में मुख्य पक्षकार नही है. उसके बाद कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई पक्ष आपसी समझौते से विवाद को हल करने के लिए आएगा तो वो पहल करेंगे.
अगस्त 2017 शिया वक्फ बोर्ड- इसी साल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाख़िल कर कहा विवादित जमीन पर राम मंदिर बने. इसी बीच शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि विवादित जमीन पर वो अपना दावा छोड़ने के लिए तैयार है और वो चाहते है कि विवादित जमीन पर राममंदिर बने. हालांकि उन्होंने अपने हलफनामे में ये भी कहा कि लखनऊ के शिया बहुल इलाके में उन्हें मस्जिद बनाने की जगह दी जाए. इस हलफ़नामे का बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी ने विरोध किया था और कहा था शिया वक्फ बोर्ड इस मामले में मुख्य पक्षकार नही है और कानून की नजर में उनके हलफ़नामे की कोई अहमियत नही है.
अक्टूबर 2017 श्री श्री रविशंकर- साल 2017 के अक्टूबर महीने में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने अयोध्या विवाद को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाने की पहल की थी. अक्टूबर 2017 आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी विवाद लो आपसी सहमति से हल करने के लिए प्रयास किये. इस संबंध में श्री श्री रविशंकर ने सभी पक्षों से मुलाकात की लेकिन बात नही बन पाई.

अब शुक्रवार को पूरे देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी होंगी कि कोर्ट इस मामले में मध्यस्थता के आदेश देता है या नही, साथ ही उत्सुकता इस बात की भी होगी कि अगर मध्यस्थता होती है तो क्या आपसी सहमति से इस विवाद का कोई हल निकल पायेगा?

Supreme Court Ayodhya Ram Mandir Hearing: अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला

Supreme Court Ayodhya Ram Mandir Hearings: अयोध्या रामजन्मभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद, क्या सुप्रीम कोर्ट से बाहर आपसी सहमति से बनेगी बात?

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