अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां बलात्कार पीड़ित जीवित हैं , वह नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए क्योंकि उसका भी निजता का अधिकार है और वे पूरी जिंदगी इस तरह के कलंक के साथ जीवित नहीं रह सकते मौत, रेप पीड़ितों की पहचान, सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को रेप के मामलों में मीडिया को सलाह दी कि किसी भी तरह से पीडिता की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए. चाहे पीडिता की मौत ही क्यों ना हो गई हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मृतक की भी गरिमा होती है. उसका अपमान नहीं किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी बलात्कार पीड़िता के नाम को सार्वजनिक करने के मसले पर सुनवाई के दौरान की. कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर बलात्कार पीड़िता नाबालिग या दिमागी तौर पर असक्षम है, तो उसका नाम परिवार की सहमति से भी सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 228- ए का मुद्दा उठाये जाने पर कहा कि मृतक की गरिमा के बारे में भी सोचिए. इसे मीडिया रिपोर्टिंग में नाम लिये बगैर भी किया जा सकता है. मृतक की भी गरिमा होती है. धारा 228- ए यौन हिंसा के पीड़ितों की पहचान उजागर करने से संबंधित है. कोर्ट ने हाल ही में कठुआ मामले में पीड़िता का नाम सार्वजनिक होने पर सीधे टिप्पणी नहीं की. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट कठुआ मामले में पीड़िता की पहचान उजागर करने के लिए कई मीडिया संस्थानों पर 10-10 लाख का जुर्माना लगा चुका है.
न्याय मित्र की भूमिका निभा रहीं इंदिरा जयसिंह ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 228 (ए) के बारे में शीर्ष अदालत का स्पष्टीकरण जरूरी है. उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने पर मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. शीर्ष अदालत को प्रेस की आजादी और पीड़ित के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा.
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