पटना। बिहार (Bihar) के एक जज ने पॉक्सो मामले (POCSO case) में दोषी को चार दिन में ही फांसी की सजा (Death Sentence) सुना दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। बता दे कि साथ ही उक्त जज ने एक ही दिन में पूरे हुए एक अन्य पॉक्सो के मामले में दोषी को उम्रकैद (life imprisonment) की भी सजा सुनाई है। जिसपर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जज के रुख को ‘सराहनीय’ नहीं कहा जा सकता है।
बता दें कि जस्टिस यूयू ललित (Justices UU Lalit) और जस्टिस एस रवींद्र भट (S Ravindra Bhat) की पीठ बिहार के एक निलंबित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार कर रही है। जिसमें आरोप लगाया गया है कि हाईकोर्ट (High Court) द्वारा पॉक्सो मामलों को कुछ दिनों के अंदर तय करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही (Disciplinary Proceedings ) शुरू की गई है।
दरअसल, जज ने पॉक्सो मामले में एक दिन के अंदर एक मुकदमे में दोषी को उम्रकैद की सजा सुनाई और बच्ची से दुष्कर्म के एक अन्य मामले में जज ने चार दिन के भीतर ट्रायल पूरा करने के बाद एक शख्स को फांसी की सजा सुना दी थी। जिसके बाद पीठ ने जज द्वारा रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है और पटना हाईकोर्ट से मामले से जुड़े दस्तावेज मंगवाए हैं।
वही, पीठ ने ये भी कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि निर्णय को रद्द करना होगा। लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा दृष्टिकोण सराहनीय है। जस्टिस ललित ने कहा कि हम मौत की सजा तय करने वाले कारकों का आकलन करने के तरीकों को विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। हमें जेल रिकॉर्ड देखना होगा। यहां इस जज ने चार दिनों में मौत की सजा सुनाई है।
गौरतलब है कि याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि ऐसे उदाहरण सामने हैं जो ये दर्शाते हैं कि एक गलत फैसला पारित करने पर न्यायाधीश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है। इस पर जस्टिस ललित ने कहा कि पीठ ने कुछ दिन पहले हत्या के एक मामले में गैरकानूनी सजा सुनाने पर एक न्यायाधीश की सेवा समाप्त करने के निर्णय पर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया था।
इसके अलावा पीठ ने यह भी कहा कि न्यायाधीश का दृष्टिकोण निर्धारित कानून के अनुरूप नहीं था। सजा सुनाए जाने के मुद्दे पर क्या हम एक दिन में निर्णय करते हैं? सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो कहते हैं कि सजा सुनाने के मुद्दे पर फैसले एक ही दिन में नहीं किए जाने चाहिए।
पीठ ने कहा कि आपने एक ही दिन आरोपी को सुना और आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, ऐसा नहीं होता है।
मुकदमों का बोझ एक मुद्दा है और एक मामले के प्रति दृष्टिकोण एक अलग मुद्दा है।
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