Operation Kaveri को क्यों दिया गया ये नाम… आखिर क्या है सूडान संघर्ष? जानिए सभी सवालों के जवाब

नई दिल्ली: सूडान में इस समय सेना और अर्धसैनिक बल के बीच संघर्ष जारी है. जिससे देश भर में इस समय गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है. उधर, भारत ने भी सूडान में फंसे अपने नागरिकों को निकालने की कवायद तेज कर दी है. इसी कड़ी में 26 अप्रैल को भारतीय नागरिकों का पहला जत्था दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा, जिसमें 360 भारतीय शामिल रहे. हालांकि भारतीय सरकार के ‘ऑपरेशन कावेरी’ के तहत अभी भी हजारों भारतीय नागरिकों को सूडान से लाने की तैयारी की जा रही है.

कावेरी नदी पर क्यों रखा गया ऑपरेशन का नाम

अब आपको बता दें कि इस ऑपरेशन का नाम कावेरी नदी पर ही क्यों रखा गया है. दरअसल इस समय सूडान में जितने भी भारतीय फंसे हुए हैं उनमें से अधिकतर दक्षिण भारत से आते हैं. इसलिए कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच में बहने वाली नदी कावेरी के नाम पर इस ऑपरेशन का नाम रखा गया है. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब किसी भारतीय रेस्क्यू ऑपरेशन का नाम किसी नदी के नाम पर रखा गया हो इससे पहले यूक्रेन और रूस युद्ध में फंसे भारतीयों को वापस देश लाने के लिए ऑपरेशन गंगा की शुरुआत की गई थी. युद्धग्रस्त देश यूक्रेन में फंसे नागरिकों को वापस लाने के लिए इस ऑपरेशन की शुरुआत की गई थी.

अभी भी हजारों नागरिक फंसे

दरअसल इस समय भारत के करीब 3000 नागरिक सूडान में जारी संघर्ष के बीच फंसे हुए हैं. जहां भारतीय सरकार ने बीते सोमवार (24 अप्रैल) को अपने नागरिकों को भारत वापस लाने के लिए ‘ऑपरेशन कावेरी’ की शुरुआत की थी. इसी कड़ी में अब 360 भारतीयों को अपने देश वापस लाया जा चुका है. इस बीच ख़ास बात ये रही कि कल यानी बुधवार को जैसे ही ये नागरिक सूडान से दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे तो पूरा दिल्ली एयरपोर्ट भारत माता की जय, इंडियन आर्मी जिंदाबाद, पीएम नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा.

 

नागरिकों ने जताया आभार

मौके पर मौजूद मीडिया ने भारतीय नागरिकों से बातचीत की जिस दौरान एक नागरिक ने भारतीय सरकार का आभार व्यक्त किया है. सूडान से लौटे इस भारतीय नागरिक ने बताया की भारत सरकार ने हमारा बहुत साथ दिया है. हम यहां सुरक्षित पहुंच पाए जो कि बड़ी बात है. आगे शख्स ने भारतीय सरकार और नरेंद्र मोदी को धन्यवाद किया. सुरेंद्र सिंह यादव जो कल ही भारतीय सरकार के ऑपरेशन कावेरी के तहत सूडान से दिल्ली एयरपोर्ट आए हैं वह मीडिया को बताते हैं कि वह एक IT प्रोजेक्ट के तहत वहां फंस गए थे. लेकिन भारत सरकार की मदद से वह सूडान से बाहर आ पाए हैं. जेद्दा में इस समय करीब 1000 लोग मौजूद हैं. सरकार और दूतावास मिलकर उन्हें वहां से निकालने में मदद कर रही है.

सूडान में चल रहे संघर्ष को समझें

बता दें, महज कुछ दिन पहले ही सूडान की सेना और पैरामिलिट्री रैपिड सपोर्ट फोर्स (RSF) के बीच जंग शुरू हुई है. ये पूरा संघर्ष सेना के कमांडर जनरल अब्देल-फतह बुरहान और पैरामिलिट्री फोर्स के प्रमुख जनरल मोहम्मद हमदान डगालो के बीच जारी है जो पहले साथ ही थे.

इस पूरे संघर्ष की जड़ें साल 2019 के अप्रैल महीने से जुड़ी हुई हैं जब सूडान के तत्कालीन राष्ट्रपति उमर अल-बशीर के खिलाफ देश की जनता विद्रोह पर उतर आई थी. लेकिन बाद में अल-बशीर की सत्ता को सेना ने उखाड़ दिया था. बशीर सत्ता से बेदखल जरूर हो गए लेकिन इसके बाद भी सूडान में विद्रोह की आग नहीं थमी. सेना और प्रदर्शनकारियों के बीच बाद में समझौता हुआ जिसके तहत एक सोवरेनिटी काउंसिल बनी और फैसला लिया गया कि 2023 के आखिर तक चुनाव करवाए जाएंगे.

इसी साल अबदल्ला हमडोक सूडान के प्रधानमंत्री बनें लेकिन इससे भी बात नहीं बनी और अक्टूबर 2021 में सेना ने तख्तापलट कर दिया. तख्तापलट होने के बाद जनरल बुरहान काउंसिल के अध्यक्ष तो जनरल डगालो उपाध्यक्ष बन गए.

पहले से ही दोनों जनरल कभी साथ नहीं थे लेकिन वर्तमान समय में दोनों एक-दूसरे के खिलाफ नज़र आ रहे हैं. इसका कारण दोनों के बीच हुआ मनमुटाव है क्योंकि दोनों के बीच सूडान में चुनाव करवाने के लिए एकराय नहीं बन पाई. कहा तो ये भी जा रहा है कि सेना ने एक प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव के तहत RSF के करीब 10 हजार जवानों को सेना में शामिल करने की बात कही गई थी लेकिन बात यहां अटक गई कि पैरामिलिट्री फोर्स बनाने के बाद इसका प्रमुख कौन बनेगा. इसी बात को लेकर सूडान के अलग-अलग हिस्सों में पैरामिलिट्री फाॅर्स की तैनाती बढ़ गई है जिससे सेना को उकसावा मिला और देश में संघर्ष की शुरुआत हुई.

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