Story of Indian National Congress Collapse : संजय निरूपम का ताजा बयान पार्टी की इसी कमजोरी की तरफ संकेत कर रहा है। अब कांग्रेस इससे कैसे पार पाएगी यह पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। मुझे लगता है कि पार्टी में बिखराव का दौर अभी कुछ वक्त और चलेगा। यह तब तक चलेगा जब तक कोई नया अध्यक्ष पार्टी की कमान नहीं संभाल लेता है
नई दिल्ली. महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा की गहमागहमी के बीच देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कितना बिखरेगी, और कितना नीचे की तरफ जाएगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता जा रहा है। टिकट बंटवारे को लेकर एक तरफ जहां हरियाणा और महाराष्ट्र के पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं में भारी असंतोष देखा जा रहा है वहीं उत्तर प्रदेश में बिना चुनाव के ही उठापटक दिखने लगी है।
ऐसे तो 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद से ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा या अन्य सत्ताधारी दलों में जाने की होड़ लगी थी, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से तो ऐसा लगने लगा है कि पार्टी की आंतरिक सत्ता में जो जहां काबिज हैं उन्हें छोड़कर हर कोई पार्टी छोड़ने को तैयार बैठा है बशर्ते उसे कोई अपना ले।
अभी सबसे अधिक चर्चा जिस नेता को लेकर हो रही है वह हैं अदिति सिंह और संजय निरूपम। तो पहले बात करते हैं अदिति सिंह की। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के विशेष सत्र में कांग्रेस पार्टी के बहिष्कार के बावजूद विधायक अदिति सिंह ने इसमें शामिल होकर सबको हैरान कर दिया। इतना ही नहीं, जिस दिन यूपी विधानसभा का विशेष सत्र आयोजित किया जा रहा था उसी दिन लखनऊ में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी योगी सरकार के खिलाफ पैदल मार्च कर रही थीं और अदिति सिंह पैदल मार्च से नदारद थीं।
वह विधानसभा सत्र में शामिल होकर विकास के मुद्दे पर बात कर रहीं थीं। ठीक एक दिन बाद उन्हें वाई प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिल गई और इसके साथ ही उनके पार्टी छोड़ने की चर्चा तेज हो गई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अदिति सिंह पर जिस तरह की मेहरबानी दिखाई है, स्पष्ट है कि वह भाजपा में शामिल होने जा रही हैं।
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब अदिति ने पार्टी लाइन से अलग हटकर कदम उठाया हो। इससे पहले भी उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन किया था।
अदिति सिंह को राजनीति में लाने का सबसे बड़ा हाथ प्रियंका गांधी का माना जाता है, लेकिन राजनीति के खेल भी बड़े निराले होते हैं। उसी प्रियंका गांधी की गांधी जयंती पर लखनऊ में पदयात्रा का खुला विरोध कर अदिति सिंह ने कांग्रेस को संदेश दे दिया कि अब वो क्या करने जा रही हैं।
दिल्ली, मसूरी और फिर अमेरिका में पढ़ाई करने के बाद कॉरपोरेट करियर छोड़ कर राजनीति में कदम रखने वाली अदिति सिंह रायबरेली से पांच बार विधायक रहे बाहुबली अखिलेश की बेटी हैं। जानकार लोगों का कहना है कि पिता के न रहने के बाद राजनीतिक विरोधी अदिति सिंह को कमजोर करने में लग गए।
अदिति के पास मजबूती का कोई आधार नहीं था। उनके घर उनके पिता की दबंगई का जो तंत्र था उसे आगे बढ़ाना वाला कोई बचा नहीं था। ऊपर से राहुल, प्रियंका और सोनिया का करीबी होना भी उनकी राजनीति को नुकसान पहुंचा रहा था। इस सबके बीच अपने राजनीतिक करियर में नफा-नुकसान का अंदाजा लगाकर अदिति ने एक नया दांव खेलने की कोशिश की है। देखना है अब इसमें वह कितना आगे जा पाती हैं।
इससे इतर महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच कांग्रेस को नेताओं के बगावती तेवरों से जूझना पड़ रहा है। पहले हरियाणा में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने टिकटों में खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया और कहा कि हरियाणा कांग्रेस अब हुड्डा कांग्रेस हो गई है। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में संजय निरुपम ने बागी तेवर अख्तियार कर प्रचार न करने का ऐलान कर दिया है। महाराष्ट्र में कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद निरुपम ने ट्वीट कर कहा कि शायद पार्टी को अब उनकी सेवाओं की जरूरत नहीं रह गई है।
संजय निरुपम ने मीडिया के सामने आकर भी मल्लिकार्जुन खड़गे समेत पार्टी के बड़े नेताओं पर हमला बोला और आरोप लगाया कि राहुल गांधी व उनके करीबियों के खिलाफ साजिश रची जा रही है। निरुपम ने कहा कि कांग्रेस के अंदर सिस्टमैटिक फॉल्ट हो गया है। अगर इससे नहीं निकले तो पार्टी और तबाह हो जाएगी और बर्बाद होगी।
हरियाणा, महाराष्ट्र और अब उत्तर प्रदेश के ताजा घटनाक्रम को देखें तो यह कहने में कोई हिचक नहीं कि कांग्रेस में विखराव का सिलसिला अभी थमा नहीं है। यह कहां जाकर रूकेगा अभी कहना मुश्किल होगा। दरअसल, राहुल गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली थी तो चुनावी सफलता और विफलता मिली वो एक अलग मसला है, लेकिन पार्टी में संगठन स्तर पर कई बड़े बदलाव किए थे और आने वाले वक्त में बहुत सारे बदलाव होने थे।
उन तमाम नेताओं की वीआरएस का ऑफर दे दिया गया था जो ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स कर रहे थे। संगठन में दशकों से जो नेता कुर्सी पर जमे थे उन्हें यह महसूस होने लगा था कि राहुल की कांग्रेस में उनका गुजरा मुश्किल है। राहुल गांधी की चुनावी विफलता के पीछे पार्टी के अंदर गुटबाजी बड़ी वजह रही। पार्टी की आर्थिक ताकत तो पहले से कमजोर हो ही रखी है।
संजय निरूपम का ताजा बयान पार्टी की इसी कमजोरी की तरफ संकेत कर रहा है। अब कांग्रेस इससे कैसे पार पाएगी यह पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। मुझे लगता है कि पार्टी में बिखराव का दौर अभी कुछ वक्त और चलेगा। यह तब तक चलेगा जब तक कोई नया अध्यक्ष पार्टी की कमान नहीं संभाल लेता है।