SSLV-D1: ‘स्माल सैटेलाइट लांच व्हीकल’ लांच, जानिए इसरो के लिए क्यों खास है ये मिशन?

SSLV-D1: नई दिल्ली। इसरो ने आज देश का पहला स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल लॉन्च कर दिया। इस मिशन को SSLV-D1/EOS-02 नाम दिया गया है। इससे पहले छोटे उपग्रह सुन सिंक्रोनस ऑर्बिट तक के लिए पीएसएलवी (PSLV) पर निर्भर थे और बड़े मिशन जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट के लिए जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क 3 का इस्तेमाल होता […]

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SSLV-D1: ‘स्माल सैटेलाइट लांच व्हीकल’ लांच, जानिए इसरो के लिए क्यों खास है ये मिशन?

Vaibhav Mishra

  • August 7, 2022 2:07 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

SSLV-D1:

नई दिल्ली। इसरो ने आज देश का पहला स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल लॉन्च कर दिया। इस मिशन को SSLV-D1/EOS-02 नाम दिया गया है। इससे पहले छोटे उपग्रह सुन सिंक्रोनस ऑर्बिट तक के लिए पीएसएलवी (PSLV) पर निर्भर थे और बड़े मिशन जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट के लिए जीएसएलवी और जीएसएलवी मार्क 3 का इस्तेमाल होता था। एक तरफ जहां पीएसएलवी को लॉन्च पैड तक लाने और असेंबल करने में दो से तीन महीनों का वक्त लगता है, तो वहीं एसएसएलवी (SSLV) महज 24 से 72 घंटों के भीतर असेंबल किया जा सकता है।

कभी भी और कहीं से भी होगा लॉन्च

बता दें कि इसके साथ ही इसे इस तरह तैयार किया गया है कि कभी भी और कहीं से भी लॉन्च किया जा सकता है, फिर चाहे वह ट्रक के पीछे लोड कर प्रक्षेपण करना हो या फिर किसी मोबाइल लॉन्च व्हीकल पर या कोई भी तैयार किया लॉन्च पैड। इसे कहीं से भी लॉन्च किया जा सकता है।

बढ़ेंगे लॉन्च के नंबर, रिवेन्यू में भी फायदा

गौरतलब है कि SSLV के आते ही लॉन्च के नंबर बढ़ेंगे, इसरो पहले से ज्यादा उपग्रह प्रक्षेपित कर पाएगा। जिससे कमर्शियल मार्केट में भी भारत अपनी अलग पहचान बनाएगा। इसके साथ ही रिवेन्यू के लिहाज से भी इससे काफी फायदा होगा। माइक्रो, नैनो या कोई भी 500 किलो से कम वजनी सैटेलाइट भेजे जा सकेंगे। पहले इनके लिए भी पीएसएलवी का ही प्रयोग होता था। अब SSLV, PSLV के मुकाबले सस्ता भी होगा और PSLV पर मौजूदा लोड को कम करेगा।

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