World Sparrow Day: बेंगलुरु में गौरैया संरक्षण में जुटे स्पैरोमैन एडविन जोसेफ, अपने घर को ही बना डाला बर्ड सैक्चुरी

स्पैरोमैन एडविन जोसेफ ने अपने घर को एक बर्ड सैक्चुरी में बदल दिया है. जोसेफ ने कहा कि ‘लगभग 12 साल पहले मेरी पत्नी एक पैन में चावल साफ कर रही थी. जब टूटे चावल नीचे गिर जाते थे तो गौरैयों का झुंड उन्हें खाने के लिए पहुंच जाता था. जिसे देखकर मैंने उसे और चावल डालने को कहा जिससे उनकी संख्या बढ़ गई.

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World Sparrow Day: बेंगलुरु में गौरैया संरक्षण में जुटे स्पैरोमैन एडविन जोसेफ, अपने घर को ही बना डाला बर्ड सैक्चुरी

Aanchal Pandey

  • March 20, 2018 11:08 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

बेंगलुरु. आज यानि 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है. साल 2010 से इस दिवस को मनाया जा रहा है. पूरे देश की तरह बेंगलूरु में भी गौरैया की संख्या घटती जा रही है. ऐसे में वहीं के रहने वाले एडविन जोसेफ जिन्हें स्पैरोमैन भी कहा जाता है उन्होंने अपने घर को एक बर्ड सैक्चुरी में बदल दिया है. जोसेफ ने कहा कि ‘लगभग 12 साल पहले मेरी पत्नी एक पैन में चावल साफ कर रही थी. जब टूटे चावल नीचे गिर जाते थे तो गौरैयों का झुंड उन्हें खाने के लिए पहुंच जाता था. जिसे देखकर मैंने उसे और चावल डालने को कहा जिससे उनकी संख्या बढ़ गई. फिर किसी ने हमें गमले में लगाने के लिए एक पौधा दिया ताकि गौरैया उसमें अंडे दे सके. इसके बाद मैंने उनके लिए घर बनाया. शुरुआत में हम लगभग 12 चिड़ियों को खिलाते थे लेकिन बाद में ये बढ़कर 200 हो गईं.’

जोसेफ ने कहा कि ‘जब मैं छोटा बच्चा था तब मैंने अपने घर के नजदीक कई गौरैयाओं को देखा था. जब मेरी शादी हुई तो हमारे घर में गौरैया का घोसला था. लेकिन धीरे धीरे वे खत्म हो गईं. एक बार मैंने एक म्यूजियम में कांच के ग्लास में गौरेया देखी जिसे भारतीय गौरैया के रूप में दिखाया गया था. ‘ अगर हम अभी इन्हें बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाते हैं तो बुरी स्थिती में पहुंच जाएंगे.’ उन्होंने कहा कि ‘पेड़ों के जंगलों को कंक्रीट के जंगलों में तबदील कर दिया गया है.

झीलें भी खत्म हो गई हैं. ऐसे में गौरैया छांव के लिए भटक रही हैं.’ जोसेफ का कहना है कि टावर से निकलने वाली इलैक्ट्रोमैग्नेटिक वेव इन पक्षियों के लिए बड़ी परेशानी है. जोसेफ बेंगलुरू में बीईएमएल के पूर्व कर्मचारी हैं जिन्हें मात्र 1600 रूपये प्रतिमाह की पेंशन मिलती है. जोसेफ को इस काम के लिए शुरुआत में काफी परेशानी हुई. उन्हें सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली और उन्होंने अपनी पत्नी के साथ इस काम को शुरु किया.

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