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Sohrabuddin encounter case CBI verdict: सबूतों के अभाव में सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले के सभी 22 आरोपी बरी, जज ने कहा- मैं असहाय हूं

मुंबई. सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में सीबीआई विशेष अदालत में जज एसजे शर्मा ने  अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने सबूतों के आभाव में सभी 22 आरोपियों को बरी कर दिया है. सीबीआई की स्पेशल अदालत ने अपने फैसले में आज कहा कि जो गवाह और सबूत पेश किए गए हैं वो किसी साजिश और हत्या को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, परिस्थिति के अनुसार जो भी सबूत पेश किए गए वो इसे साबित नहीं करते हैं.

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सीबीआई इस बात को सिद्ध ही नहीं कर पाई कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को हैदराबाद से अगवाह किया था. इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं. जज ने गवाहों के मुकर जाने पर कहा, ‘मैं असहाय हूं. हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन कानून और सिस्टम को किसी भी तरह के आरोपों को साबित करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है. हम मानते हैं कि सरकार और एजेंसियों ने इस केस की जांच करने में बहुत मेहनत की. जांच एजेंसियों ने 210 गवाहों को पेश भी किया. लेकिन इस मामले में किसी भी तरह के सबूत सामने नहीं आए. इसमें अभियोजन पक्ष की गलती नहीं है कि गवाहों ने कुछ नहीं बताया.’ अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि सबूतों के आभाव में सभी 22 आरोपियों को बरी किया जा रहा है.

वहीं कोर्ट ने तुलसीराम प्रजापति की हत्या को साजिश करार देने को भी गलत बताया है. बता दें कि इस मामले में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह (गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री), पुलिस अधिकारी डीजी बंजारा के नाम भी शामिल थे. पहले ये मामला गुजरात कोर्ट में चल रहा था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया और मामला मुंबई ट्रांसफर कर दिया गया था. 2014 में भाजपा अध्यक्ष को इस केस में क्लीन चीट दे दी गई थी. मामले में गुजरात-राजस्थान के चार पुलिस वालों और गुजरात के एंटी-टेरेरिज्म के प्रमुख डीजी वंजरा को भी क्लीन चीट मिली. आज इस मामले में 22 पुलिस अफसरों को भी बरी कर दिया गया.

क्या था मामला
2005 में गुजरात के गांधीनगर के पास एक छोटे से गुंडे सोहराब्द्दीन शेख को गुजरात पुलिस अफसरों ने मार गिराया था. इस मुठभेड़ को अंजाम देने वाले गुजरात पुलिस अफसरों ने सोहराबुद्दीन को आतंकी बताया था. इस मुठभेड़ में उसकी पत्नी कौसर बी भी मारी गई थी. एक साल बाद इस केस का गवाह तुलसीराम प्रजापति भी मारा गया. इसे एक फर्जी मुठभेड़ करार दिया गया. जांचकर्ताओं ने कहा कि ये हत्याएं उन लोगों को चुप करवाने के लिए की गई जो एक रंगदारी रैकेट में महत्वपूर्ण थे. ये कथित तौर पर वो रंगदारी रैकेट था जो तीन राज्यों- गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश की पुलिस अपने राजनीतिक मालिकों के आदेश पर चला रही थीं. हालांकि आज कोर्ट ने कह दिया है कि इस मामले में आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं इसलिए सभी को बरी किया जा रहा है.

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Aanchal Pandey

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