नई दिल्ली। सनसनीखेज श्रद्धा हत्याकांड में लगातार चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। हालांकि अभी भी ये केस एक पहेली बना हुआ है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक आरोपी आफताब लगातार जांच को गुमराह कर रहा है। यही वजह है कि पुलिस ने साकेत कोर्ट से आफताब का नार्को टेस्ट कराने की मांग की थी। अदालत से अनुमति मिलने के बाद अब जल्द ही पुलिस आफताब का नार्को टेस्ट कराएगी, जिससे इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाया जा सके।
आइए आपको बताते हैं कि पुलिस नार्को टेस्ट के जरिए आफताब से कौन से पांच राज उगलवाना चाहती है?
1- श्रद्धा की हत्या क्यों की?
2- श्रद्धा की हत्या कैसे की?
3-श्रद्धा की लाश कहां ठिकाने लगाई?
4- हत्या में इस्तेमाल हथियार कहां हैं?
5-श्रद्धा हत्याकांड में कौन-कौन से लोग शामिल हैं?
बता दें कि नार्को टेस्ट से कुछ बातें तो जरूर साफ हो जाती है लेकिन इससे हमेशा चौंकाने वाले खुलासे नहीं होते हैं। साथ ही कोर्ट भी नार्को टेस्ट को सबूत नहीं मानता है।
नार्को टेस्ट किसी आरोपी से सही बात उगलवाने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले शख्स को नशे की दवाएं दी जाती हैं। जिनमें सोडियम पेंटोथल, स्कोपोलामाइन और सोडियम अमाइटल शामिल हैं। जब दवा आरोपी के शरीर के अंदर जाती है तो वह एनेस्थीसिया के कई स्टेज से गुजरता है। मतलब वह एक तरीके से संवेदना शून्य हो जाता है। आरोपी ना तो बेहोश होता है और ना ही पूरी तरह से होश में होता है। उस समय उसकी कल्पना शक्ति बेहद कम हो जाती है और वह सिर्फ सच बोलता है। यही कारण है कि पुलिस सच का पता लगाने के लिए नार्को टेस्ट कराती है।
भारत में नार्को टेस्ट के लिए सबसे पहले अदालत से इजाजत लेनी पड़ती है। इसके बाद आरोपी से सहमित ली जाती है। बाद में उसे सरकारी अस्पताल ले जाया जाता है। जहां पर आरोपी का ब्लड प्रेशर, पल्स, बल्ड फ्लो और मानसिक स्थिति की जांच की जाती है। इसके लिए आरोपी की ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ टेस्ट भी किया जाता है। इसके बाद उसे दवा देकर आधी बेहोशी की हालत में ले जाया जाता है। फिर सवाल-जवाब शुरू होता है। बता दें कि इस दौरान वहां पर आरोपी के जवाबों का विश्लेषण करने के लिए फोरेंसिक एक्सपर्ट, मनोवैज्ञानिक, ऑडियो-वीडियोग्राफर और सहायत नर्सिंग स्टाफ के साथ ही वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी मौजूद होते हैं।
गौरतलब है कि भारत की अदालतों में कानूनी तौर पर सबूत के लिए नार्को टेस्ट की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जाता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक दवा के इस्तेमाल के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है कि आरोपी शख्स सिर्फ सही बात ही बोले। वह उस समय होश-हवास में नहीं होता है और एनेस्थीसिया की स्थिति में अपनी इच्छा से स्टेटमेंट नहीं दे रहा होता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि नार्को टेस्ट की मदद से खोजी गई किसी जानकारी को सबूत के तौर पर अदालत में पेश किया जा सकता है।
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