नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग मिलने के हिंदुओं के दावे पर बहस जारी है। कोई शिवलिंग कह रहा है तो कोई फव्वारा। इस बीच बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) आईआईटी के मैटेरियल साइंस एंड केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर आरएस सिंह और एसोसिएट प्रोफेसर चंदन उपाध्याय ने बताया कि शिवलिंग का सच क्या […]
नई दिल्ली। वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में कथित शिवलिंग मिलने के हिंदुओं के दावे पर बहस जारी है। कोई शिवलिंग कह रहा है तो कोई फव्वारा। इस बीच बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) आईआईटी के मैटेरियल साइंस एंड केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर आरएस सिंह और एसोसिएट प्रोफेसर चंदन उपाध्याय ने बताया कि शिवलिंग का सच क्या होना चाहिए।
केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर आरएस सिंह ने कहा, ‘मेरा निजी विचार है कि यह शिवलिंग है, लेकिन अगर कुछ लोग इसे फव्वारा कह रहे हैं, तो इसका कारण यह है कि इस शिवलिंग पर फव्वारे के आकार की आकृति बनाई गई है। अगर इसे फव्वारा माना जाए तो पुराने जमाने में बिजली नहीं थी।
प्रोफेसर आरएस सिंह ने आगे कहा, ‘पुराने दिनों में फव्वारा चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पानी काफी ऊंचाई से गिराया जाता था और दबाव के कारण यह फव्वारे का रूप ले लेता था। ज्ञानवापी परिसर या विश्वनाथ मंदिर में कभी भी फव्वारे की ऐसी व्यवस्था नहीं देखी गई। मुझे शिवलिंग पर कुछ सीमेंट जैसा महसूस हो रहा है।
प्रोफेसर आरएस सिंह ने आगे कहा, ‘उस पत्थर का कोई रासायनिक विश्लेषण नहीं किया गया है, इसलिए यह पन्ना है या नहीं, इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है। इसके रंग से ऐसा लगता है कि यह बहुत पुराना है और लंबे समय से पानी में है लेकिन यह कहना मुश्किल है कि यह कौन सा पत्थर है। केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर आरएस सिंह ने कहा, ‘पिछली बार इस मंदिर का निर्माण टोडरमल ने कराया था। 400-450 साल पहले। उस समय बिजली नहीं थी।
उस समय भी फव्वारे बनाए गए थे, लेकिन जब तक पानी 100-150 फीट से नीचे नहीं गिराया जाता, तब तक फव्वारे में पानी नहीं आ सकता। प्रोफेसर आरएस सिंह ने कहा, ‘देखो यह एक फव्वारा हो सकता है, लेकिन इतने दायरे का फव्वारा होना असंभव है, अगर यह एक फव्वारा है तो इसके नीचे एक प्रणाली होगी।
इसका पूरा मैकेनिज्म होगा। यह शोध का विषय है कि यहां पानी की आपूर्ति कैसे होती होगी। अगर कोई सिर्फ फव्वारा बनाता है तो बेसमेंट में पूरा सिस्टम बनाया जाएगा।
प्रोफेसर आरएस सिंह ने आगे कहा कि, ‘अगर कोई दावा कर रहा है कि यह एक फव्वारा है, तो इसे संचालित किया जा सकता है, इसे चलाकर देखा जा सकता है, जो इसे फव्वारा कह रहे हैं, इसे चलाकर दिखाओ, तो वे मान लेंगे कि यह एक फव्वारा है और अगर यह फव्वारा नहीं है तो यह एक शिवलिंग है।
वहीं, मैटेरियल साइंस के एसोसिएट प्रोफेसर चंदन उपाध्याय ने कहा, ‘वैज्ञानिक निरीक्षण जरूरी है। इसे शीर्ष में फव्वारे की तरह बनाने का प्रयास किया गया है, शीर्ष में सफेद सीमेंट भी है। पीओपी भी हो सकता है। रेत और सीमेंट कमीशन भी हो सकता है। इसका पता लगाना बहुत आसान है, जो बिना ज्यादा छेड़छाड़ के संभव है।
एसोसिएट प्रोफेसर चंदन उपाध्याय ने कहा, ‘अगर यह एक फव्वारा है, तो इसमें फव्वारे की नोक होनी चाहिए, जो दिखाई नहीं दे रही है। एक पाइप होना चाहिए। इसमें कोई पाइप दिखाई नहीं दे रहा है। यह शिवलिंग पन्ना पत्थर का भी हो सकता है, लेकिन जब तक इसकी पूरी जांच नहीं हो जाती, तब तक सशर्त नहीं कहा जा सकता।