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देश भर में शरिया अदालत खोलने के प्रस्ताव पर शिया वक्फ बोर्ड ने कहा- मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं पर चले देशद्रोह का केस

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के हर जिले में शरिया अदालतें बनाने की कोशिश में है. जफरयाब जिलानी ने इसका प्रस्ताव लाने की बात की है. इस प्रस्ताव को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने इसे देशद्रोह का केस बताते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की है.

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waseem rizvi react on shariat court
  • July 9, 2018 5:41 pm Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्ली. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश के हर जिले में शरीयत कोर्ट खोलने की तैयारी में है. पर्सनल लॉ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने कहा कि 15 जुलाई को बोर्ड की बैठक में इसका प्रस्ताव चर्चा के लिए पेश किया जाएगा. शरीयत अदालतें खोलने के मुद्दे पर विवाद खड़ा हो गया है. उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने शरिया अदालतें खोलने और काजी (जज) नियुक्त करने के मुस्लिल पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्ताव को देशद्रोह करार दिया है. इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिम लॉ बोर्ड के नेताओं और मौलानाओं पर मुकदमा चलाने की मांग की है.

रिजवी ने कहा है कि देश के संविधान और कानून से अलग कोई कानून और अदालत नहीं हो सकती है. रिजवी ने कहा कि स्लामिक देशों में जहां शरई हुकूमत होती है वहां अदालतों का गठन हुकूमत ही करती है. अब यह साफ हो चुका है कि देश में आजादी के बाद से संविधान के समानांतर शरई अदालतें चल रही हैं. इन अदालतों का संचालन और काजियों की नियुक्ति कौन कर रहा है. इस्लामिक देशों में तो हुकूमतें करती हैं.

वसीम रिजवी ने कहा कि यह साफ हो गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान के समानांतर शरिया अदालतें बनाना चाहता है. वह देश के हर जिले में शरिया अदालतें खोलना चाहता है, उनमें इंसाफ हो या ना हो. उन्होंने कहा कि आखिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड होता कौन है शरिया अदालतें बनाने वाला. यह देशद्रोह का केस है. अगर आप संविधान के बराबर ऐसी कोई कोशिश कर रहे हैं तो यह देशद्रोह का केस है और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर मुकदमा चलना चाहिए.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रस्ताव को कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने संविधान की मंशा के खिलाफ बताया है. पीपी चौधरी ने कहा कि मीडिएशन सेंटर अलग बात है. अगर कानूनी तौर पर बात करते हैं तो ऐसे कोर्ट के फैसले कानूनी तौर से बाध्य नहीं कर सकते. सिर्फ कोर्ट ही बाध्य कर सकता है. उन्होंने कहा कि संविधान में साफ तौर पर कहा गया है कि कोई भी कानून संविधान के अनुसार ही होगा. इसके अलावा किसी भी कानून का कोई औचित्य नहीं है. देश के अंदर हर मसले को सुलझाने के लिए संविधान है और सबकुछ उसके मुताबिक ही होना चाहिए. अगर कोई इसके समानांतर सिस्टम बनाना चाहता है तो वह संविधान की मंशा के खिलाफ है.

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