नई दिल्ली. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित का निधन हो गया है. वह 81 वर्ष की थीं. तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित का निधन दिल्ली के एस्कॉर्ट हास्पिटल में हुआ. वह कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थीं. उनके असमय निधन से राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर छा गई है. शीला दीक्षित के निधन पर कई नेताओं गहरा दुख प्रकट किया है.
शीला दीक्षित का जन्म साल 1931 में पंजाब के कपूरथला में हुआ. उनकी पढ़ाई दिल्ली के कॉन्वेंट |ऑफ जीसस और मैरी स्कूल में हुई. इसके बाद से उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज से ग्रेजुएट और मास्टर्स की डिग्री की.
शीला दीक्षित के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1984 में हुई जब वह कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद चुनी गई. उन्होंने 1984 से 1989 के बीच संयुक्त राष्ट्र संघ में महिलाओं की स्थिति पर भारत का प्रतिनिधित्व किया. वह 1986 से लेकर 1989 तक केंद्रीय मंत्री रहीं. इस दौरान वह पहले संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनीं उसके बाद वह प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री बनीं.
अगस्त 1990 में उन्होंने उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ जमकर आवाज उठाई. इसके बाद शीला को उनके 82 साथियों के सहित 23 दिनों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जेल भेजा गया. इस आंदोलन के बाद शीला दीक्षित देशभर में मशहूर हो गईं. 1970 के दशक की शुरुआत में शीला दीक्षित यंग वूमन एसोशिएशन की अध्यक्ष बनीं. इसके अलावा वह इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की सेक्रेटरी भी रहीं.
साल 1998 में शीला दीक्षित को पहली बार दिल्ली का कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद दिल्ली में कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की. वह 1998 से लेकर साल 2013 तक दिल्ली की लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनीं. मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक कुशल प्रशासक के तौर पर अमिट छाप छोड़ी.
शीला दीक्षित को 11 मार्च 2014 को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया. हलांकि शीला इस दौरान राज्यपाल पद पर ज्यादा दिनों तक नहीं रहीं और उन्होंने अगस्त 2014 में राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित ने दिल्ली की उत्तरी पूर्वी शीट से चुनाव लड़ा.
शीला दीक्षित का शुमार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शामिल रहा. शीला दीक्षित कांग्रेस की एक ऐसी नेता थीं जिनकी छवि आम लोगों में भी दमदार रही. वह जितनी अपनी सहयोगियों के बीच लोकप्रिय थीं उतनी ही दूसरे दल को लोग उनको तवज्जो देते थे. ऐसे समय में जब कांग्रेस को एक वरिष्ठ और ईमानदार नेता की जरूरत थी जो पार्टी को आगे ले जा सके शीला दीक्षित का चले जाना कांग्रेस पार्टी के लिए अपूर्णीय क्षति है.
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