नई दिल्ली. रविवार से नवरात्र का त्योहार पूरे धूम-धाम से मनाई जएगी. नवरात्रि के नौ दिन मां के भक्त पूरी श्रर्दा भाव से मां दुर्गा के भक्ति में लीन रहेंगे. नवरात्रि में नौ दिन तक श्रद्धालू अपने घरों में अंखड ज्योती की स्थापना करते हैं. नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप देवी कूष्माण्डा की उपासना की जाती है. मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के सभी रोग मिट जाते हैं. इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य में वृद्धि होती है. यदि मनुष्य अपने सच्चे मन से मां कूष्माण्डा शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है.
नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की आरधना की जाती है. इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक को दूर कर आयु-यश में वृद्धि कर सकता है. मां के भक्तों के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है. मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए.
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।’
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप को देवी कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है. इन्हेंने अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड को बनाया है इसलिए इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा. जब सृष्टि नहीं थी तो चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब इन्होंने ईषत हास्य से सृष्टि की रचना की थी. इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में हैं. सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल मां कूष्माण्डा में ही हैं. नवरात्रि के चौथे दिन इन्हीं की पूजा की जाती है.
ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
कवच
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥
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