Shaheed Diwas 2023: शहीद दिवस का क्यों है इतना महत्व? जानिए इसके पीछे की कहानी

नई दिल्ली। आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपने जान की कुर्बानी दी थी, उनके इस बलिदान को याद करते हुए और उनके सम्मान के लिए आज के दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। वीरों के लिए प्रार्थना का आयोजन […]

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Shaheed Diwas 2023: शहीद दिवस का क्यों है इतना महत्व? जानिए इसके पीछे की कहानी

Vaibhav Mishra

  • March 23, 2023 1:29 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली। आज ही के दिन भारत के वीर सपूतों- भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपने जान की कुर्बानी दी थी, उनके इस बलिदान को याद करते हुए और उनके सम्मान के लिए आज के दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वीरों के लिए प्रार्थना का आयोजन

शहीद दिवस का मनाया जाना उन वीरों को समर्पित है जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान गंवाई थी। 23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह और उनके साथी शिवराम राजगुरु व सुखदेव थापर को लाहौर में फांसी पर लटका दिया गया था। इस दिन को उन वीरों की याद में समर्पित किया जाता है, जो देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर गए। शहीद दिवस पर विभिन्न शैक्षणिक संस्थान, सरकारी और गैर-सरकारी संगठन मौन सभा का आयोजन करते हैं और शूरवीरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। कई शैक्षणिक संस्थानों में इस दिन 23 मार्च को निबंध लेखन प्रतियोगिताएं और सार्वजनिक भाषण भी आयोजित किए जाते हैं।

जानिए फांसी के पीछे की कहानी

वीर भगत सिंह और उनके साथी अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। इसी के चलते उन्होंने सेंट्रल असेंबली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट बिल के विरोध में बम फेंका था। इसके बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी।

भारत में कुल 7 शहीद दिवस हैं

हर साल भारत में कुल सात शहीद दिवस मनाए जाते हैं जो शहीदों के सम्मान में होते हैं। ये अलग-अलग तारीखों और महीनों में होते हैं, जैसे 30 जनवरी, 23 मार्च, 19 मई, 21 अक्टूबर, 17 नवंबर, 19 नवंबर और 24 नवंबर। यदि 30 जनवरी और 23 मार्च को मनाए जाने वाले शहीद दिवस की बात की जाए तो ये इन तारीखों में अंतर है। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला हाउस परिसर में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी, जो भारत को आजादी मिलने के ठीक पांच महीने बाद हुई थी। वहीं, 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने अंग्रेजों के अत्याचार का सामना करते हुए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था।

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