Bhagat Singh Jayanti: युवाओं के चहेते हैं शहीदे-आजम, जानिए जयंती पर उनसे जुड़ी खास बातें

नई दिल्ली। आज पूरा भारत शहीदे-आजम भगत सिंह का 115वां जन्‍मदिन मना रहा है। भगत सिंह का नाम आज भी लेते हुए नौजवानों के आंखो में तेज सी कौंध सी जाती है। शहीद – ए- आजम आज के दौर में भी युवाओं के लिए शौर्य, साहस और बौद्धिकता के परिचायक है। सिर्फ 23 साल की […]

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Bhagat Singh Jayanti: युवाओं के चहेते हैं शहीदे-आजम, जानिए जयंती पर उनसे जुड़ी खास बातें

Satyam Kumar

  • September 28, 2022 12:47 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली। आज पूरा भारत शहीदे-आजम भगत सिंह का 115वां जन्‍मदिन मना रहा है। भगत सिंह का नाम आज भी लेते हुए नौजवानों के आंखो में तेज सी कौंध सी जाती है। शहीद – ए- आजम आज के दौर में भी युवाओं के लिए शौर्य, साहस और बौद्धिकता के परिचायक है। सिर्फ 23 साल की उम्र में अपने साथियों के साथ फांसी पर हंसते – हंसते चढ़ जाने वाले इस नौजवान ने आजादी की ऐसी जीजीविषा फैलाई, जो देश को आजादी पर जाकर ही रूकी। भगत सिंह को उनके साथी सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी दी गई थी।

बंदूकें बो रहा हूं

भगत सिंह के बचपन से जुड़ी एक मशहूर किस्सा है। जब आठ बरस का बच्‍चा अपनी खेत में सूखी लकड़ियां और टहनियों को मिट्टी से ढ़क रहा था। बच्चे के पिता उसे ऐसा करते देख जिज्ञासावश पूछ बैठे। पिता किशन सिंह बोले, “खेत में यह क्या करते हो भगत?” अपने धुन में तल्लीन उस बालक ने बिना पिता की तरफ देखते हुए जबाव दिया, “मैं बंदूकें बो रहा हूं।” जबाव सुन पिता ने अपनी हंसी रोकते हुए पूछा, क्या करोगे बंदूकों का? “जब ये बड़े होकर बंदूक बन जाएगा तो अपने देश को आजाद कराऊंगा” बालक ने बेझिझक जबाव दिया। यह बालक बड़ा होकर अपने देश की आजादी के लिए जो मिसाल कायम कर गए। जो लाखों लोगों के प्रेरणास्त्रोत बन गए।

HSRA से जुड़े

युवाओं के जेहन में भगत सिंह की एक बेमिसाल छवि है। वहीं भगत सिंह ने युवाओं में देश की आजादी के अलख जगाने के लिए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से भी जुड़े। 1928 के बाद इसका नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन कर दिया गया। इसके संस्थापक सदस्यों में चंद्रशेखर आज़ाद, योगेंद्र शुक्ल इत्यादि थे। HSRA के सदस्य रहते हुए भगत सिंह ने लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय में साथ भाग लिया। विरोध जुलूस में पुलिस के लाठीचार्ज से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई। इस घटना को भगत सिंह ने देखा और उन्होंने बदला लेने की कसम खाई। फलस्वरूप लाठीचार्ज का आदेश देने वाले जे पी सौन्डर्स को मारकर भगत सिंह ने लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया।

किताबों से लगाव

भगत सिंह को जेल हुई। जेल में वह बौद्धिक कार्यो में सक्रिय हो गए। जेल में रहने के दौरान भगत ने मैं नास्तिक क्यों हूं? और जेल डायरी जैसी किताबें लिखी, जो आज भी युवाओं का मार्गदर्शन करती हैं। जब 23 मार्च 1931 को शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। जानकर आश्चर्य होगा कि अपने फांसी पर जाने से पहले वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। ऐसे धैर्यवान थे हमारे भगत…

 

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