नई दिल्ली। Lok Sabha Election UP Politics: लोकसभा चुनाव के तीन चरण का मतदान हो चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ठाकुर उम्मीदवार को न उतारने तथा विजय रुपाला के बयान को लेकर ठाकुर समुदाय के बीच नारजगी दिखी। अब लोकसभा चुनाव पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल की तरफ बढ़ रहा है।
इन इलाकों की सीट पर ठाकुर समुदाय अहम भूमिका निभाते हैं, जिस वजह से भाजपा अब डैमेज कन्ट्रोल में लग गई है ताकि पश्चिमी यूपी वाली कमी पूर्वांचल तथा अवध में न रह जाए। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक सप्ताह में कई बड़े फैसले किए गए हैं, जिसे ठाकुर समुदाय की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
लोकसभा चुनाव के लिहाज से यूपी बेहद अहम राज्य है, क्योंकि देश की सबसे अधिक 80 सीटें यहीं से आती है। भाजपा ने इस बार के चुनाव में मिशन-80 का लक्ष्य यूपी में सेट किया है, लेकिन टिकट बंटवारे की वजह से ठाकुर समाज की नाराजगी पार्टी के लिए बढ़ा दी। पश्चिमी यूपी में कई जगहों पर महापंचायत करके ठाकुरों ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। ऐसे में पिछले दो चरणों में ठाकुर समाज की नाराजगी ने भाजपा की टेंशन बढ़ा दी है।
पश्चिमी यूपी तथा ब्रज क्षेत्र के बाद अब जब चुनाव अवध-पूर्वांचल की ओर बढ़ रहा है तो भाजपा ठाकुर समुदाय को मैनेज करने में लग गई है। बता दें कि अवध और पूर्वांचल क्षेत्र में कहीं न कहीं ठाकुर समुदाय के वोटर राजनीतिक तौर पर काफी प्रभावशाली माने जाते हैं। यही कारण है कि भाजपा पश्चिम की गलती पूर्वांचल और अवध में दोहराना नहीं चाहती। क्योंकि ठाकुरों की नारजगी से भाजपा को नुकसान होता दिख रहा था। इसीलिए अब बीजेपी ठाकुरों को साधने में लग गई है।
जनसत्ता पार्टी के अध्यक्ष तथा कुंडा से विधायक राजा भैया ने रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से बेंगलुरु में मुलाकात की थी। जिसे ठाकुर समुदाय की नाराजगी को दूर करने से जोड़कर देखा जा रहा है। बता दें कि राजा भैया उत्तर प्रदेश में ठाकुर समुदाय के बड़े नेता के तौर पर जाने जाते हैं तथा उनकी पकड़ केवल प्रतापगढ़ सीट पर ही नहीं बल्कि सुल्तानपुर से लेकर अमेठी, रायबरेली, अयोध्या, प्रयागराज तथा कौशांबी क्षेत्र तक है। बता दें कि राजा भैया 2004 से लेकर 2017 तक सपा के साथ थे, लेकिन योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद से भाजपा के साथ नजर आते हैं।
उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सबसे देर में अगर किसी लोकसभा सीट पर टिकट का ऐलान किया है तो वो बृजभूषण शरण सिंह की कैसरगंज लोकसभा सीट थी। महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप में फंसे बृजभूषण शरण की प्रत्याशी को लेकर भाजपा कशमकश में फंसी हुई थी, क्योंकि उनका अपना सियासी आधार है। गोंडा तथा बस्ती मंडल में ठाकुर समुदाय के बीच बृजभूषण सिंह की मजबूत पकड़ मानी जाती है।
बता दें कि विजय रुपाला के बयान को आधार बनाकर ठाकुरों ने प्रेशर पॉलिटिक्स बनाने में दांव चला, जिसका वजह से भाजपा ने भले ही बृजभूषण शरण का टिकट काट दिया, लेकिन पार्टी ने किसी और को प्रत्याशी बनाने के बजाय उनके बेटे करण बृजभूषण सिंह को ही उम्मीदवार बनाया।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में भाजपा ने यूपी में इस बार केवल 14 ठाकुर प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि 2019 में 17 ठाकुर प्रत्याशी दिए थे तथा 2014 में 21 उम्मीदवार उतारे थे। भाजपा ने इस बार भले ही कम प्रत्याशी दिए हों, लेकिन उनकी आबादी से ज्यादा प्रत्याशी उतारे हैं. यूपी में 7 फीसदी के लगभग ठाकुर मतदाता है, लेकिन वह अपनी आबादी से अधिक हमेशा चुनाव जीतते रहे हैं। राज्य की 80 लोकसभा सीट में से 20 सीटों पर ठाकुर समाज का प्रभाव है। सूबे में सीएम योगी आदित्यनाथ तथा केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी ठाकुर समुदाय से ही आते हैं।
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