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SC: सदन में भाषण और वोट के लिए रिश्वत लेने वालों पर मुकदमा चलेगा या नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगा आज फैसला

नई दिल्ली: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ये तय करेगी कि क्या संसद सदस्य या विधायक संसद या फिर विधानसभा में एक निश्चित भाषण देने या मतदान करने के बदले रिश्वत लेते हैं तो उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है. ये निर्णय पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के मामले […]

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सुप्रीम कोर्ट
  • March 4, 2024 8:20 am Asia/KolkataIST, Updated 10 months ago

नई दिल्ली: सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की संविधान पीठ ये तय करेगी कि क्या संसद सदस्य या विधायक संसद या फिर विधानसभा में एक निश्चित भाषण देने या मतदान करने के बदले रिश्वत लेते हैं तो उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता है. ये निर्णय पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के मामले में 1998 में पारित फैसले पर विचार करने के बाद लिया गया, और नरसिंह राव. संवैधानिक न्यायालय ये तय करेगा कि इस मामले में अभियोजन से छूट दी जा सकती है या नहीं? पिछले साल 5 अक्टूबर को चीफ जस्टिस के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संवैधानिक अदालत ने सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पीठ में न्यायाधीश जस्टिस एएस बोपन्ना. जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट करेगा आज फैसलाSC ने सांसदों, विधायकों को अभियोजन से छूट देने वाले फैसले पर दोबारा विचार करने के लिए पैनल का गठन किया | इंडिया न्यूज़ - बिजनेस स्टैंडर्ड

इससे पहले पांच सदस्यीय पीठ ने ये मानते हुए मामले को सात सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया था कि मामले में उठाए गए मुद्दे व्यापक सार्वजनिक हित से जुड़े हैं. उस समय ये कहा गया था कि इन सवालों का राजनीतिक नैतिकता से जुड़े है. इसमें ये भी कहा गया है कि अनुच्छेद 105(2) और अनुच्छेद 194(2) संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को प्रावधान प्रदान करते हैं ताकि वो परिणामों के डर के बिना एक स्वतंत्र वातावरण में अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें.

रिश्वत घोटाले पर फैसले पर विचार

सात जजों की पीठ झामुमो सांसदों से जुड़े रिश्वत घोटाले पर फैसले पर विचार कर रहा है. ये आरोप लगाया गया कि सांसदों ने 1993 में नरसिंह राव सरकार को समर्थन देने के लिए मतदान किया था. बता दें कि 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया, लेकिन अब 25 साल बाद इसे फिर से सौंपा जाएगा, ये मुद्दा फिर तब उठा जब राजनेता सीता सोरेन ने धारा 194(2) के तहत अपने खिलाफ आपराधिक मामले को रद्द करने के लिए एक आवेदन दायर किया. साथ ही उन्होंने कहा कि संविधान उन्हें अभियोजन से छूट देता है, और सोरेन पर झारखंड में 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था.

 

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